जून 24, 2011

देश में फल फुल रहा बाबाओं का काला साम्राज्य..



 भारत के साधू, महात्मा और बाबे बड़े ही शक्तिशाली हैं | अपने यहाँ साधुओं , फकीरों  के अड्डे और अखाड़े , दरगाह इतियादी की संख्या मे पिछले कुछ समय से बेहिसाब वृद्धि हुई है  | दुनिया के सबसे अनोखे देव बाबे भारतवर्ष के कुछ गली कूचों में बिराजे हुए हैं, भक्त समाज अपने दिमाग की खिड़कियाँ बंदकर उनकी भक्ति में लीन सा हो गया लगता है | भारतीयों की उदारता का भी कोई जवाब नहीं है। वे प्रत्येक असंभव बात पर आँख बंदकर विश्वास कर लेते हैं यदि उसमें ईश्वर की महिमा मौजूद हो।  बिना कोई काम किये महात्मा जी यहाँ सुपर अय्याशी भरी जिन्दगी जीते हैं | लोगों को मोह- माया त्यागने का उपदेश देने वाले ये महात्मा खुद हजारों करोड़ की अकूत संपत्ति के मालिक होते है | कोई भी नए माडल की कार जब बाज़ार में आती है तो सबसे पहले इन बाबों के पास पहुंचती है | बाबाओं के भक्त करोड़ों में होने के कारण सियासतदान भी खुल्लम - खुल्ला इनके दरों पे आकर माथा रगड़ते हैं | दरअसल असली ताकत तो संतों  के पास वोटों की है , जिनके सहारे राजनेता इनकी  ओर आकर्षित होते हैं | अपने भगतों का ये बाबे पूंजीवादी पार्टियों के साथ गठबंधन करवाते हैं | इस प्रकार बाबे और राजनेता मिलकर जनता का शोषण करते हैं | इन बाबों के जाएज़- नजाएज़ कामों की भी राजनेता न सिर्फ हिमायत करते हैं , बल्कि उन्हें सुरक्षा भी उपलब्ध करवाते हैं | देश के तमाम गुंडे , बदमाश , बलात्कारीयों के इलावा इन बाबाओं -धर्मगुरुओं के पास भी ज़ेड प्लस सुरक्षा है | दरअसल संत और संतों के ये डेरे लोगों के पिछड़ेपन और अंधविश्वास का फायदा उठाकर करोड़ों का कारोबार चला रहे हैं | जितने ज्यादा डेरे के पैरोकार , उतना ही बड़ा धंधा | दूसरे टी.वी. ने इनकी शक्ति को भी कई गुना बढ़ा दिया है | ये धार्मिक डेरे सामाजिक कार्य भी करते हैं , जिसकी आड़ में ये अपना काला धंधा चलाते  हैं |  कितने ही नित्यानंद , आशुतोष , डेरा सच्चा सौदा वाले , चंद्रास्वामी , आसाराम बापूयों  पर हत्या , बलात्कार ,ठगी  के सैंकड़ों  मामले चल रहे हैं और सीबीआई तक इनकी जांच कर रही है | आखिरकार बाबा बनना बहुत ही आसान है , साधू-फकीर बनने के लिए किसी डिग्री -डिप्लोमा की जरूरत तो पड़ती नहीं | भगवा -हरा कपडा डाल लो , हाथ में कमंडल और मोरपंख घुमाते रहो , नहीं तो इसकी भी क्या जरूरत ! सीधे नगन होकर घुमो , दूसरों की मेहनत पर खाओ और जीओ | साधू, फकीर , मोलवी का रूप धारण कर देश का स्वयंभू मार्गदर्शक बन जाओ ......
अब सत्य साईं बाबा जी के जीवन को ही लें ,  जो ये कहकर गए हैं की उनका उत्तराधिकारी कर्नाटक के मंडिया ज़िले में प्रेमा साईं के रूप में जन्म लेगा | दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों में शुमार भारतीय अध्यात्मिक गुरु साईं बाबा के निवास स्थान यजुर्वेद मंदिर के कपाट खोले जाने से अकूत धन - दौलत बरामद हुई है | कमरे से 98 किलो सोना, 12 करोड़ रुपये कैश, 307 किलो चांदी और कई बेशकीमती जेवरात मिले हैं। सोने और जेवरात की कीमत करोड़ों में आंकी जा रही है। बाबा का धन बोरियों में भरकर लूटने की घटनाएँ भी सामने आई हैं | यही नहीं कपाट खोले जाने से पहले ही वहां से संपत्ति निकल कर अवैध तरीके से बाहर भिजवाई जा रही थी और इसमें सरकारी वाहन का उपयोग किया गया था | बाबा की संपत्ति कितनी है, इसका सही-सही अंदाजा किसी को नहीं है। समझा जाता है कि यह 40,000 करोड़ रुपए से लेकर डेढ़ लाख करोड़ रुपए के बीच है। भारत में जहां एक ओर लाखों लोग गरीबी की मार झेल रहे हैं और रात में भूखे पेट सोने को मजबूर हैं तब भी साईं अवतार के रूप में मशहूर एक बाबा के पास से करोड़ो रूपए का सोना-चांदी और नकद मिलना कोई  आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं है। भारत सहित विश्व के अनेक देशों में उनके द्वारा तमाम स्कूल, अस्पताल सहित कई कल्याणकारी संस्थाएं स्थापित की गईं | लेकिन साथ ही उन पर बलात्कार के आरोपों सहित लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने के भी आरोप लगाए गए थे | 1940 में 14 वर्ष की आयु में 'सत्या ’ (बाबा) ने अपने अवतार होने का उद्घोष किया था | उन्होंने कहा था कि 'मैं शिव शक्ति स्वरूप, शिरडी साईं का अवतार हूं ’ | भगवान् बाबा ने अपना घर छोड़ दिया और घोषणा की कि भक्तों की पुकार उन्हें बुला रही है और उनका मुख्य कार्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा है.| उनके दर्शन के लिए विशाल भीड़ जुटती थी.| साईं बाबा के भक्तों में देश के कई बड़े राजनेता, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के जज, सेना के अधिकारियों के अलावा व्यापार, खेल और फ़िल्म जगत की कई बड़ी हस्तियाँ शामिल हैं | भारत और विदेश की बड़ी विभूतियां उनके पांव छूती थीं । आश्रमों और सामाजिक संगठनों का एक साम्राज्य उन्होंने बना रखा था ।  लेकिन खुद को सिरडी के साईं बाबा का अवतार कहने वाले पुट्टपूरथी के सत्य साईं बाबा को लेकर कई देशों की सरकारों ने भारत सरकार से ऐसे सवाल पूछे थे  , जिनका जवाब देने में भारत सरकार को भी शर्म आ रही थी ।  लगभग 56000 करोड़  रुपये की कीमत का आध्यात्मिक साम्राज्य बनाए बैठे सत्य साईं बाबा पर ब्रिटेन, स्वीडन, जर्मनी और अमेरिका के सांसदों के कई समूहों ने आरोप लगाए थे कि वे तिकड़म और हाथ की सफाई दिखाते हैं और भक्तों को सम्मोहित करके उनका यौन शोषण करते हैं। आरोपों के अनुसार आश्रम में इस तरह की शर्मनाक गतिविधियां लंबे समय से चलती रही हैं और इनके बारे में कभी पुलिस रिपोर्ट तक नहीं लिखी गई। आरोप सामान्य शारीरिक संबंधों के अलावा समलैंगिक गतिविधियों के भी थे और कई भक्तों का कहना है कि उन्हें मोक्ष दिलाने के बहाने उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए गए। आरोप नये नहीं हैं लेकिन इनकी कभी जांच भी नहीं की गई। आश्रम में यौन शोषण और आर्थिक धोखा धड़ी के शिकार हुए कई लोगों की रपट जब भारत की पुलिस ने नहीं लिखी तो उन्होंने अपने उच्चायोगों और दूतावासों में शिकायत की और आखिरकार अपने देशों में जा कर शिकायत लिखवाई। इन शिकायतों का अब का एक लंबा पुलिंदा तैयार हो चुका है। मलेशिया की एक भक्त ने सीधे सत्य साईं बाबा पर आरोप लगाया है तो ब्रिटेन की एक महिला ने यहां तक कहा है कि बाबा और उनके सहयोगियों ने लंबे समय तक उसका शारीरिक शोषण किया। ज्यादातर आरोप किशोरों और युवा भक्तों द्वारा लगाए गए हैं। सच बात तो यह है कि 1970 में एक ब्रिटिश लेखक टाल ब्रोक ने सत्य साईं बाबा को सैक्स का भूखा भेड़िया करार दिया था और अब कैलिफोर्निया अमेरिका के रहने वाले ग्लेन मैनॉय ने अमेरिकी अदालत में सत्य साईं बाबा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अर्जी दी थी । अगर यह मुकदमा दायर हो जाता है तो वारंट अमेरिका से आएंगे और भारत सरकार को संधि के तहत इन्हें लागू करवाना पड़ेगा। ब्रिटेन की लेबर पार्टी के सांसद टोनी कोलमेन और भूतपूर्व ब्रिटिश मंत्री टॉम सैक्रिल ने तो यह मामला ब्रिटिश संसद में भी उठा दिया था। उन्होंने बीबीसी की एक रिपोर्ट को सबूत के तौर पर पेश कर मांग की थी कि सत्य साईं बाबा को ब्रिटेन आने के लिए हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाए। यह बात अलग है कि सत्य साईं बाबा आमतौर पर अपने आश्रम से बाहर ही नहीं निकलते थे । उस के कुछ ही समय बाद चार युवा उनके प्रशांति निलयम में सुरक्षा कर्मियों के हाथों मारे गए  | आश्रम के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने साईं बाबा के बेडरूम में घुस कर उन्हें मारने की कोशिश की थी. , इस घटना ने कई दूसरी अफ़वाहों को जन्म दिया लेकिन सच्चाई कभी सामने नहीं आ सकी | हैदराबाद में एक समारोह में उन्होंने हवा में हाथ लहराकर सोने की ज़ंजीर अपनी भक्तों को दिखाई लेकिन बाद में उसका वीडियो देखने से पता चला की वो ज़ंजीर उन्होंने अपनी आस्तीन से निकाली थी | इस घटना के बाद कई बुद्धिजीवियों ने साईं बाबा को चुनौती दी कि वो अपना लबादा निकाल कर और आम कपड़े पहने कर उनका सामना करें और चमत्कार दिखाए | मशहूर जादूगर पीसी सरकार ने तो उनके सामने ही उन्हीं की तरह हवा से विभूति और सोने की जंजीर निकाल कर दिखा दी थी। इसके बाद भक्तों ने सरकार को धक्के मार कर आश्रम से बाहर कर दिया था। अप्रैल 1976, को एच. नरसिंहैया, नामक एक भौतिक विज्ञानी और बंगलूर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति, ने एक समिति की अध्यक्षता की जिसमें उन्होंने सार्वजनिक रूप से बाबा को चुनौती देकर अपने  चमत्कार सिद्ध करने के लिए कहा था  ,नरसिंहैया समिति के इलावा ब्रिटेन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  बीबीसी ने भी एक वृत्तचित्र प्रसारित कर बाबा के काले कारनामों का पर्दाफाश किया था | लेकिन होना क्या था? आखिर लोग क्यूँ अंधभगत हो जाते हैं ?


अब तस्वीर का दूसरा पहलू ये है की आज शोषण -उत्पीडन करने वाली देशी- विदेशी शक्तियों के विरुद्ध पीड़ित जनता अपनी आवाज़ बुलंद कर रही है | शोषक और शोषितों में विभाजित समाज में ये मठाधीश महात्मा लोगों को सिखाते हैं की ये जींवन तो पानी का बुलबुला है  , भगवान् की इच्छा से ही सब कुछ होता है | इसलिए तुम भगवान् की पूजा करो तो संकट अपने आप दूर हो जायगा | शांति कायम रखो | जैसे हो उसी से संतुष्ट रहो | भगवान् की भक्ति करो | शोषक वर्ग के विरुद्ध बगावत मत करो | भगवान् पर पूरा भरोसा रखो , वह अवश्य न्याय देगा | तो इन धर्मगुरुयों द्वारा शोषितों के दिमाग की खूब धुलाई की जाती हैं | जब स्वास्थ्य , शिक्षा , नोकरी, कानून -व्योवस्था, घर-परिवार जैसी समस्यायों का कोई भरोसेमंद समाधान नहीं दिखता हो , वो बेचारा भी क्या करे ? तब परिस्थिति का मारा आदमी सुख की तलाश में देवताओं  की और तो भागेगा ही ना | इस जन्म में न सही तो अगले जन्म तक की भी वेट करेगा | अब देखो हम कितना भी कहें कि यार जनता के असली मुद्दे रोज़ी , रोटी, रोज़गार हैं , महंगाई से निजात पाना है , श्रम के लुटेरे हाक्मों के विरुद्ध लड़ना है जी | पर इस रास्ते कोई शार्टकट नहीं है न | जब आवाम के असली मुद्दों पर लड़ाई की धार इतनी तेज़ हो जायगी और उन्हें लगने लगेगा की हमारी समस्यायों का कारण पिछले जन्मों के पाप की बजाए लूट पे आधारित सरमायदारी निजाम है , जिसे बदला भी जा सकता है तब वो संतों की शरण में जाने की बजाए अपनी मुक्ति के लिए लड़ेगा | इसलिए जरूरत है जनता के असली मुद्दों पर संघर्ष तेज़ करने की 
                                                                                                                           - रोशन सुचान 

नोट -आलेख से किसी की भावना को आहत करना हमारा मकसद नहीं है लेकिन आप भी जरा सोचे सही क्या गलत क्या है .........  

इसे यहाँ भी पढ़ें : (तेज़ न्यूज़http://teznews.com/home/news/3170

जून 14, 2011

तुमने उस देशभगत निगमानंद को मार डाला

9 दिनों के अनशन की नोटंकी वाले रामदेव और शहीद होने वाले निगमानंद एक ही हॉस्पिटल मे
निगमानंद नहीं रहे , गंगा को बचाने की मांग को लेकर 68 दिनों तक अनशन करने के बाद स्वामी निगमानंद की मौत हो गई। उनका स्वामी होने का उतना महत्व नहीं था , जितना एक जनहितैषी किरदार का मनुष्य बनकर मानवता की भलाई में अपनी क़ुरबानी देने का है |  वे उसी  हॉस्पिटल में भर्ती थे, जहां बाबा रामदेव भी भर्ती थे । इससे पहले भी स्वामी निगमानंद जी ने क्रमवार 73 दिन , 68 दिन के इलावा लोहारीनागपाला जल विद्युत परियोजना को रद्द करने की मांग को लेकर भी अनशन किया था। ये बात सही है की जहां टी .आर. पी. है वहां मीडिया और जहां वोट हैं वहां राजनेता | याद रहे की सिर्फ 9 दिनों का अनशन करने वाले रामदेव का हाल जानने के लिए देशभर का मीडिया और हाई प्रोफाइल संत व नेता वहां जमावड़ा लगाए रहे, लेकिन कोमा की हालत में जीवन-मृत्यु से जूझ रहे निस्वार्थ योगी निगमानंद की किसी ने खबर नहीं ली , शाएद इसलिए की उन्होंने कोई स्टंट नहीं किया और रविवार की रात उनकी गुमनाम मौत हो गई। भारतीय समाज में जिस गंगा को गंगा माता कहकर पूजा जाता है , वो उस गंगा में डाली जा रही गंदगी के विरोधी थे | जो आवाज़ उन्होंने उठाई वो किसी ने नहीं सुनी और तब स्वामी ने कहा की जब तक गंगा में डाली जा रही गंदगी को बंद नहीं किया जाता ,  तब तक वो अनाज का एक दाना भी नहीं खायेंगे और वो मरणव्रत पर बैठ गये | कई उद्योगपति तो मान गये पर बीजेपी सरकार तक सीधी पहुंच रखने वाला हिमालयन स्टोन क्रेशर के मालिक ज्ञानेश कुमार नहीं मान रहा था और सरकार की पीठ पर सवार होकर वो अपनी जिद पर अड़ा रहा , हारकर स्वामी ने मोर्चा लगा लिया और अपनी जान देकर शहीद हो गये | कहा जाता है की स्वामी निगमानंद की तबीयत बिगड़ने पर जब उन्हें सरकारी हॉस्पिटल लाया गया था , जहां  इलाज के दौरान साधु के शरीर में जहर डाला गया| उनके पेराकारों का तो यहाँ तक कहना है की हॉस्पिटल के अन्दर इलाज के बहाने उनको जहर दिया जाता रहा और उनकी बिगड़ रही हालत को लोगों से छुपाया गया | स्वामी निगमानंद के करीबी कौशलेन्द्र के अनुसार 30 अप्रैल को जिला अस्पताल में एक नर्स निगमानंद को इंजेक्शन लगाने आई थी। उस नर्स को पहले कभी नहीं देखा गया था। संदेह होने पर जब उन्होनें नर्स को पूछा की वो स्वामी जी को कौन सी दवाई दे रही है तो वह हडबडा गई और इंजेक्शन लगाकर वहां से चली गई। उस नर्स को उससे पहले और उस दिन के बाद अस्पताल में कभी नहीं देखा गया। इंजेक्शन लगाने के बाद से ही स्वामी निगमानंद की तबियत बिगडने लगी। उनके मुंह से झाग आने लगे। उनके खून का सैंपल दिल्ली के लाल पैथ लैब भेजा गया था । निगमानंद के शरीर में कॉलिसटेत एंज़ाइम का पाया गया। ये एंजाइम शरीर में जहर का प्रतीक है। रिपोर्ट से जाहिर होता है कि संत निगमानंद को कीटनाशक वाला जहर दिया गया | संत निगमानंद के आश्रम मातृसदन के डॉक्टरों के मुताबिक इस रिपोर्ट से साफ जाहिर होता है कि संत निगमानंद को जहर देकर मारा गया।
बीजेपी के मुख्यमंत्री खनन माफियाओं से मिलकर जहर देने के आरोप में फंसे 
ऐसा तभी हो सकता है जब सरकार उनको अपने रास्ते का काँटा समझ रहे उद्योगपतियों की दासी बन जाए | अपने आपको पार्टी विद डिफरेंस कहने वाली बीजेपी की सरकार ने गंगा को प्रदूषित कर रहे उद्योगपतियों और हिमालयन स्टोन क्रेशर के मालिक खनन माफिया ज्ञानेश कुमार का खुलकर साथ दिया है | स्वामी शिवानंद ने राज्य की बीजेपी सरकार पर उद्योगपतियों , और उच्च पदों पर बैठे लोगों के इशारे पर इस युवा संन्यासी को जहर देकर मारने का आरोप लगाया है तथा पोस्टमार्टम  एम्स से करवाने की मांग की है | वहीं 68 दिनों के अनशन के बावजूद निगमानंद से बातचीत न करने तथा उद्योगपतियों और खनन माफियाओं के इशारे पर संन्यासी को जहर देकर मारने के आरोपों से विवादों में घिरी बीजेपी सरकार की जांच भी करवानी होगी| रही बात प्रदूषण की तो भारत में जल स्त्रोतों का प्रदूषण बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है , अगर प्रदूषण इसी तरह से बढता रहा तो हमारी अगली पीढियां अपने जन्म के साथ ही रोगों को लेकर पैदा होंगी , जिनका इलाज करना आसान नहीं होगा | ये हमारी सबकी जिम्मेदारी होनी चाहिए पर इन कामों को करने के लिए कोई निगमानंद या संत सींचेवाल जैसे ही सामने आते हैं | राजनेताओं को तो गंदगी फैलाने वाले थैलीशाहों के वोट भी चाहियें और नोट भी , इसलिए वो स्वामी निगमानंद जैसों का साथ देने की बजाए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उद्योगपतियों और थैलीशाहों का साथ देते रहेंगे | ले दे कर बात रही मीडिया की तो उनको भी रामदेव जैसे ड्रामेबाजों की खबर ज्यादा अहम लगती है और भारत के भविष्य के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले जिक्र के काबिल ही नहीं लगते | ये भी हमारे समाज का दुखांत ही है की कोई दल भी इन कामों के लिए अपनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा | जिस मकसद के लिए निगमानंद ने अपनी बली दी , वो अकेले उनकी नही पूरे समाज की समस्या थी | हम सबका फ़र्ज़ बनता है की हम इस नेक काम को करने में अपना हिस्सा डालें , जिसके लिए उन्होंने अपनी कुर्बानी दी |  शहीद स्वामी को सच्ची श्रधांजली है की गंगा के प्रदूषित हो रहे पानी के इलावा सभी नदियों को प्रदूषित होने से बचाना होगा |परवर्ती पूंजीवाद की पोषक सरकारों की नव उदारवादी नीतियां जो देशी- विदेशी कम्पनियों और भू-माफियाओं द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की खूली लूट की इजाजत देती हैं के विरुद्ध भी लड़ना होगा
 -रोशन सुचान 

1. इसे यहाँ भी पढ़ें (हस्तक्षेप) http://hastakshep.com/?p=9490  

  2. इसे यहाँ भी पढ़ें (पंजाब सक्रीन) http://punjabscreen.blogspot.com/2011/06/blog-post_16.html
                                
                





 

जून 13, 2011

चे ग्वेरा की क्रांति की व्याख्या- फिदेल कास्त्रो

क्रांति के बाद


सन् 1965 के दौरान चे ग्वेरा के गायब हो जाने को लेकर तरह-तरह की अंफवाहें उड़ाई जा रही थीं। इस तरह की भ्रमपूर्ण और गलत खबरों को जानबूझकर हवा दी जा रही थी, जिसमें क्रांतिकारी दस्तों में फूट पड़ जाए। इन अफवाहपूर्ण खबरों में दावा किया जाता था कि फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा के बीच विद्यमान राजनीतिक समझदारी का अंत हो गया है, यह कि कास्त्रो ने चे पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, उन्हें निर्वासित कर दिया गया है, या कि चे की हत्या की जा चुकी है। जानबूझकर पूर्वोक्त किस्म के विभ्रमों को सप्रयास फैलाया जा रहा था।
28 सितंबर 1965 को आयोजित एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए फिदेल कास्त्रो ने घोषणा की कि कुछ ही दिनों में वह चे ग्वेरा के उस पत्र को सार्वजनिक करेंगे जिसे चे ने क्यूबा छोड़ने से बिलकुल पहले लिखा था। इसी सभा में कास्त्रो ने कहा, 'आने वाले अवसर पर हम जनता को कामरेड अर्नेस्टो चे ग्वेरा के बारे में बताएंगे।' कास्त्रो ने इसके आगे कहा कि 'शत्रु इस मामले में एक बहुत बड़ी साजिश का अनुमान कर रहा है और ढेरों भ्रम फैला रहा है कि वे यहां हैं, कि वे वहां हैं, वे जिंदा हैं या उनकी मृत्यु हो चुकी है। इस समय वे भ्रमित हैं और लगातार भ्रमों की ही खोज कर रहे हैं। वे कपटपूर्ण बातें बना रहे हैं। हम कामरेड अर्नेस्टो चे ग्वेरा के एक दस्तावेज को आपके सामने लाना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने अपनी अनुपस्थिति के बारे में बताया है, उसकी व्याख्या की है। लेकिन जैसा मैंने आपको पहले ही बताया कि इसके लिए एक पूरी बैठक की आवश्यकता होगी ('अभी' की आवाजें)। अभी नहीं, क्योंकि मैं यहां वह दस्तावेज नहीं लाया हूं। वैसे मैंने यह घोषणा साधारण रूप में ही की है....जैसा मैंने आपको बताया कि उस अवसर पर हम (चे) के उस दस्तावेज को पढ़ेंगे और कुछ मुद्दों पर चर्चा भी करेंगे।' कास्त्रो द्वारा इंगित बैठक से तात्पर्य क्यूबाई कम्युनिस्ट पार्टी की नव गठित केंद्रीय समिति के साथ आयोजित बैठक से था, जिसका सार्वजनिक रूप से सीधा प्रसारण हुआ। पार्टी की इस नव गठित केंद्रीय समिति में स्पष्ट रूप से चे ग्वेरा का नाम नहीं था। इस तथ्य को फिदेल कास्त्रो ने अपने 3 अक्टूबर 1965 को दिए गए भाषण में स्पष्ट किया। इस सभा में श्रोताओं के रूप में ग्वेरा का परिवार भी उपस्थित था।पार्टी की हमारी केंद्रीय समिति से एक खास व्यक्ति अनुस्थित है जिसमें सभी आवश्यक वरीयताएं और गुण विद्यमान हैं। लेकिन उस व्यक्ति का नाम पार्टी की केंद्रीय समिति के घोषित सदस्यों में नहीं है। शत्रु इसमें सक्षम है कि वह इस विषय में कोई इंद्रजालिक कल्पना कर ले। लेकिन इन भ्रमों को उत्पन्न करने की कोशिशें करते हुए शत्रु थक चुका है, वह संशय और अनिश्चितता उत्पन्न करने की अपनी कोशिशों से परेशान हो चुका है और इस सबका हमने बहुत धैर्यपूर्वक इंतजार किया है क्योंकि ऐसे समय पर इंतजार करना आवश्यक था।यह अंतर क्रांतिकारियों और प्रति-क्रांतिकारियों, साम्राज्यवादियों और क्रांतिकारियों के बीच का है। क्रांतिकारी जानते हैं कि इंतजार किस तरह से किया जाता है। हम जानते हैं कि किस तरह से धैर्य रखा जाता है। हम कभी निराश नहीं होते हैं। जबकि प्रतिक्रियावादी, प्रति-क्रांतिकारी हमेशा निराशा की स्थिति में ही रहते हैं, सतत उद्विग्नता के शिकार रहते हैं और निरंतर झूठ बोलते रहते हैं। और यह सब भी वे अत्यंत छिछले और घृणित तरीके से ही करते हैं।आप उन यांकी सीनेटरों और अधिकारियों की लिखी चीजें पढ़ें, तब स्वयं से प्रश्न करें; जो व्यक्ति अपने सहयोगियों के साथ संतुलित बरताव नहीं कर पा रहा है वह कांग्रेस में क्या करता होगा? इनमें से कुछ तो सर्वोच्च स्तर की मूर्खता का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। ये लोग विस्मयकारी ढंग से झूठ बोलने की आदत से ग्रस्त हैं। सच मायने में वे झूठ बोले बिना जीवित ही नहीं रह सकते हैं। वे सचाई से भयग्रस्त रहते हैं। वही, यदि क्रांतिकारी सरकार एक बात कहती है, तो आगे भी वही बात कहती है। जबकि शत्रु इसमें तीव्रता देखते हैं, भयावहता देखते हैं, और सबसे बड़ी बात कि वे इस सबके पीछे एक योजना, षडयंत्र देखते हैं! यह सब कितना हास्यास्पद है! वे किस डर में जीते हैं! और इस सबको देखकर आप कह सकते हैं : क्या वे इसी पर विश्वास करते हैं? क्या वे जो कहते हैं उन पर विश्वास करते हैं? क्या वे अपनी ही कही बातों पर विश्वास करने की आवश्यकता महसूस करते हैं? क्या वे उन सब बातों पर विश्वास किए बिना जीते हैं जिन्हें वह दिन-प्रतिदिन कहते रहते हैं? या वे इसीलिए सब कुछ कहते हैं कि उस पर विश्वास नहीं किया जाए?
इस विषय में कुछ भी कहना मुश्किल है। असल में चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों के मस्तिष्क में क्या है? कौन सा डर है जो उन्हें हर चीज भयग्रस्त कर देती है या किसी भी चीज से उन्हें तीव्र, लड़ाकू और आतंककारी योजना का ही आभास होता रहता है? वे बिलकुल नहीं जानते कि साफ हाथों और सचाई से लड़ाई करने से बेहतर कोई और तकरीब या रणनीति नहीं होती। क्योंकि यही वे हथियार हैं जो आत्मविश्वास पैदा करते हैं, विश्वास बढ़ाते हैं, सुरक्षा, गरिमा और नैतिकता को बढ़ाते और प्रसारित करते हैं। और हम क्रांतिकारी शत्रुओं को पराजित करने, उन्हें नेस्तनाबूत करने के लिए इन्हीं हथियारों का प्रयोग करते हैं।
'झूठ! क्या आज तक किसी ने क्रांतिकारियों के मुंह से झूठ सुना है? झूठ वह हथियार है जो कभी भी क्रांतिकारियों की मदद नहीं कर सकता है। और किसी भी गंभीर, अच्छे क्रांतिकारी के लिए इस बेहूदे हथियार की कभी कोई आवश्यकता भी नहीं रही है। उनका हथियार तर्क होता है, नैतिकता होता है, सचाई होता है, एक विचार की रक्षा करना होता है, एक प्रस्ताव होता है, एक पक्ष (पोजीशन) ग्रहण करना होता है।'
संक्षेप में, हमारे विरोधियों द्वारा प्रयुक्त नैतिकता संबंधी नियमावली वास्तविकता में दयनीय है। इस तरह भविष्यवक्ता, पंडित, क्यूबाई मामलों के विशेषज्ञ नियमित रूप से काम कर रहे हैं कि सामने आ पड़ी इस पहेली को सुलझाया जा सके। क्या चे ग्वेरा की मृत्यु हो चुकी है? क्या अर्नेस्टो चे ग्वेरा बीमार हैं? क्या अर्नेस्टो चे ग्वेरा के क्यूबा से मतभेद उत्पन्न हो चुके हैं? और भी इसी तरह के ढेरों बेहूदा कयास। स्वाभाविक रूप से यहां के लोगों का विश्वास मजबूत है। यहां लोग विश्वास करते हैं। लेकिन शत्रु इसी तरह की चीजों का प्रयोग करता है, विशेषकर बाहर रहकर वह भ्रम फैलाते हैं। वे हमारे ऊपर मिथ्यापवाद करते हैं। यहां, क्यूबा के विषय में उनका कहना है कि यहां एक विध्वसंक, भयावह कम्युनिस्ट शासन है। बिना कोई सबूत छोड़े लोग यहां से गायब हो रहे हैं। बिना कारण बताए उन्हें निर्वासित किया जा रहा है। और जब लोगों ने उन सबकी अनुपस्थिति को रेखांकित किया, तब हमने कहा कि हम उन्हें उचित समय पर वह सब बताएंगे। इसका मतलब इंतजार करने का कोई कारण था।
हम साम्राज्यवादी शक्तियों की घेरेबंदी में रहते और काम करते हैं। यह विश्व सामान्य परिस्थितियों में नहीं है। इतने लंबे समय तक वियतनामी लोगों के ऊपर यांकी साम्राज्यवाद के आपराधिक बम गिरते रहे, हम नहीं कह सकते कि हम सामान्य परिस्थितियों में हैं। स्थिति ऐसी है कि 1,00,000 से अधिक यांकी सैनिक मुक्ति आंदोलन का दमन करने के लिए भूमि पर उतर चुके हैं। अब साम्राज्यवादी भूमि के सैनिक एक गणतंत्र में, जिसे अन्य गणतंत्रों के समान अधिकार प्राप्त है, वे सैनिक उसकी सार्वभौमिकता को नष्ट कर रहे हैं। यह स्थिति डोमनिक गणतंत्र की तरह है। तात्पर्य यह है कि विश्व सामान्य परिस्थितियों में नहीं है। जब हमारे देश घिरे हुए हैं, तब साम्राज्यवादी भाड़े के टट्टू और नियोजित आतंकवादी कार्रवाइयां बेहूदे तरीके से की जा रही हैं; जैसे कि सिएरा एरेनजाजू (निष्काषित किए गए प्रति-क्रांतिकारियों द्वारा स्पेनी व्यापारिक जहाज पर आक्रमण) के मामले में हुआ। उस समय साम्राज्यवादी धमकाते थे कि वे लैटिन अमरीका या विश्व के किसी भी देश में हस्तक्षेप कर सकते हैं। तात्पर्य सीधा है कि हम सामान्य परिस्थितियों में नहीं रह रहे हैं। हम क्रांतिकारी कभी सामान्य परिस्थितियों में नहीं रह पाते हैं। बावजूद इसके, उस समय जब हम भूमिगत रूप से बाटिस्टा की तानाशाही का मुकाबला कर रहे थे, तब भी हमने संघर्ष के नियमों का पालन किया। इसी तरह, जब इस देश में क्रांतिकारी सरकार की स्थापना हो गई, विश्व को इसे वास्तविक रूप में स्वीकार करना चाहिए था। लेकिन ऐसी स्थिति में भी हमने (तब भी) संघर्ष के नियमों का उल्लंघन नहीं किया। इसका सीधा मतलब है कि विश्व सामान्य परिस्थितियों में नहीं है।
इसकी व्याख्या के लिए मैं अर्नेस्टो चे ग्वेरा के हस्तलिखित-टाइप पत्र को पढ़ने जा रहा हूं, जो सारे मामले की स्वयं ही व्याख्या करता है। मुझे विस्मय होगा यदि मुझे अपनी मित्रता और साथीपन को बताने की आवश्यकता हो कि कैसे इस मित्रता की शुरुआत हुई और यह किन परिस्थितियों में इसका विकास हुआ।मुझे लगता है कि इसकी आवश्यकता नहीं। मैं स्वयं को उनके पत्र को पढ़ने तक ही सीमित रखूंगा।
मैं इसे पढ़ता हूं : 'हवाना.....' इसमें कोई तारीख नहीं पड़ी है, क्योंकि इस पत्र के विषय में उद्देश्य था कि उसे किसी उचित अवसर पर पढ़ा जाए। लेकिन ध्यान रहे कि यह इसी साल के अप्रैल की पहली तारीख को प्राप्त हुआ था। आज से बिलकुल छह महीने और दो दिन पहले। मैं इसे पढ़ना शुरू करता हूं।
हवाना
कृषि वर्ष
फिदेल :
इस क्षण मैं कई चीजें याद कर रहा हूं। वह क्षण जब मैं तुमसे (क्यूबाई क्रांतिकारी) मारिया एंटोनियो के घर पर पहली बार मिला था। उसी समय तुमने मुझसे साथ काम करने का प्रस्ताव दिया था। शुरुआती तैयारियों के दौरान ढेरों समस्याएं और तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ा। एक दिन वे वापस आए और पूछा कि मौत के मामले में किसको जिम्मेदार ठहराया जाए, और वास्तव में इस सबकी जिम्मेदारी किसके ऊपर है। बाद में हमने इस सचाई को जाना कि क्रांति (यदि यह वास्तविक हो) में या तो व्यक्ति जीता है या फिर उसकी मृत्यु होती है। हमारे कई साथी हमें विजय के रास्ते पर छोड़कर आंख मूंद कर चले गए।
आज ये सारी चीजें कम नाटकीय प्रतीत होती हैं क्योंकि हम अधिक परिपक्व हो चुके हैं। लेकिन घटनाएं तो स्वयं को दोहराती हैं। मुझे प्रतीत होता है कि क्यूबाई क्रांति के साथ संबध्द मैंने अपने कर्तव्य को पूरा कर दिया है। और अब मैं तुमसे विदा कहता हूं। सभी साथियों को और तुम्हारे आदमियों को, जो अब मेरे हैं, विदा कहता हूं। अब मैं औपचारिक रूप से पार्टी की नेतृत्व स्थिति के साथ मंत्रीपद और कमांडर के ओहदे से भी त्यागपत्र देता हूं। इसके साथ ही साथ मैं क्यूबाई नागरिकता से भी त्यागपत्र देता हूं। इसके साथ क्यूबा के प्रति मेरा कोई विधिक दायित्व शेष नहीं रह गया है। लेकिन अब दायित्व कुछ प्रकृति का हो गया है। एक ऐसी प्रकृति का दायित्व जिसे उस तरह से नहीं तोड़ा जा सकता है जिस तरह किसी पद के साथ संलग्न दायित्व से पृथक हुआ जाता है।
अपने पिछले जीवन को याद करते हुए मुझे विश्वास है कि मैंने पर्याप्त एकलयता और समर्पण के साथ क्रांतिकारी कार्यों और उसकी विजय में योगदान किया है। केवल मेरी पहली गंभीर असफलता ने तुम्हारे ऊपर मेरे विश्वास को बढ़ा दिया है। सिएरा मनेस्ट्रा के पहले क्षण से ही नेतृत्व और क्रांतिकारिता के तुम्हारे गुण को शीघ्रता से नहीं सीख पाया हूं।
वास्तव में मैं यहां बहुत ही भव्य और गरिमामय दिनों में रहा हूं। कैरेबियन (मिसाइल) संकट के बुरे समय में भी तुम्हारी तरफ से तुम्हारे लोगों के जुड़ाव को तीव्रता से महसूस करता रहा हूं। उन दिनों को याद करते हुए कहता हूं कि ऐसा शायद ही कभी हुआ हो, जब किसी नेतृत्वकर्ता ने तुम्हारी तरह की बुध्दिमत्ता का प्रदर्शन किया हो। मैं स्वयं पर गर्व करता हूं कि मैंने तुम्हारा अनुकरण किया। बिना किसी झिझक के तुम्हारे प्रति यह आस्था इसके साथ जुड़े खतरों का आकलन करते हुए और सिध्दांतों पर आस्था रखते हुए थी।संसार के कई अन्य देश भी मेरे साधारण प्रयासों की उपेक्षा कर रहे हैं। मैं उन दायित्वों को पूरा कर सकता हूं, जिन्हें तुमने अस्वीकृत किया है। जाहिर सी बात है कि तुम्हारी जिम्मेदारी क्यूबाई प्रमुख के रूप में है। इस कारण हम दोनों के अलग होने का समय आ गया है।
मैं जानता हूं कि वह अवसर गम और खुशी दोनों का है। मैं अपनी सबसे शुध्दतम आशाएं निर्माता और अपने आत्मियों में सबसे प्रिय के प्रति छोड़े जाता हूं। साथ ही एक ऐसे व्यक्ति से दूर हो रहा हूं, जिसने मुझे एक पुत्र की तरह प्यार किया है। सच में, यह बात मेरी भावनाओं पर एक जख्म की तरह है। मैं एक नए युध्द क्षेत्र की ओर इस विश्वास के साथ जा रहा हूं कि तुम मेरा मार्गदर्शन करोगे। मेरे लोगों की भावनाएं किसी पवित्र कर्तव्य को पूरा करने और साम्राज्यवाद के प्रति लड़ने के लिए विद्यमान हैं। यह आश्वासन सभी आंतरिक घावों और चोटों से बढ़कर है।
मैं एक बार पुन: दोहराता हूं कि अब उदाहरणों के सिवा क्यूबा के प्रति मैं अपनी समस्त जिम्मेदारी से मुक्त होता हूं। लेकिन यह याद रखना कि यदि मेरा अंतिम समय किसी दूसरी धरती-आकाश के नीचे आता है, निश्चित रूप से मेरा अंतिम विचार तुमतुम्हारे लोगों के बारे में ही होगा। मैं तुम्हारी शिक्षाओं और तुम्हारे द्वारा दिए गए उदाहरण के लिए तुम्हें शुक्रिया अदा करता हूं। और मैं कोशिश करूंगा कि मैं अपने कार्यों को अंतिम परिणाम तक पहुंचा सकूं।
हमारी क्रांति की विदेश नीति के लिए मुझे हमेशा याद किया जाएगा, शायद आगे भी। मैं जहां भी रहूंगा, क्यूबाई क्रांतिकारी होने के दायित्व का निर्वाह करूंगा, और इसी गरिमा के अनुरूप व्यवहार भी करूंगा। मुझे खेद है कि मैं अपने बीवी-बच्चों के लिए कुछ भी नहीं छोड़कर जा रहा हूं। लेकिन मैं इस स्थिति में भी खुश हूं। मुझे उनके लिए इसके अलावा और कुछ नहीं चाहिए कि राज्य उन्हें रहने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध करा दे और पर्याप्त शिक्षा दिला दे। तुमसे और अपने लोगों से कहने के लिए बहुत सारी बातें हैं, लेकिन मुझे महसूस होता है कि वे अनावश्यक हैं। शब्द सब कुछ नहीं व्यक्त कर सकते हैं, जिनकी हम उनसे अपेक्षा करते हैं। और मैं नहीं सोचता कि अनावश्यक ही ढेरों पृष्ठ रंगे जाएं।
विजय की ओर आगे हमेशा! मृत्यु या जन्मभूमि! मैं अपने समस्त क्रांतिकारी उत्साह के साथ तुम्हारा आलिंगन करता हूं। चे. जो लोग क्रांतिकारियों के विषय में कहते हैं, और विश्वास करते हैं कि क्रांतिकारी व्यक्ति ठंडे, असंवेदनशील और भावनाहीन व्यक्ति होते हैं, उनके लिए यह पत्र सभी किस्म की भावनाओं, संवेदनाओं के साथ परिपूर्णता का उदाहरण होगा। कॉमरेड यह कोई जिम्मेदारी नहीं ,जिसका हमसे जुड़ाव हो ‍।हम सब क्रांति के प्रति जबाबदेह हैं।और यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम अपनी सर्वोच्च क्षमता के साथ क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन और सहयोग करें। हम इस जिम्मेदारी इसके परिणाम और इसके साथ जुड़े खतरों का भी अहसास करते हैं। हम इन सात वर्षों से अधिक के समय में यहां साम्राज्यवादी शक्तियों की उपस्थिति को अच्छी तरह समझ गए हैं। साथ ही इस बात को भी अच्छी तरह से समझ गए हैं कि यहां किस तरह लोगों का शोषण किया जाता है और उन्हें किस चरह उपनिवेशित किया जाता है। हम इन विद्यमान खतरों के साथ आगे बढ़ेंगे और लगातार क्रांति के दायित्व को निभाते रहेंगे।
इस कर्तव्य को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है और कामरेड चे ग्वेरा की पूर्वोक्त भावनाओं के प्रति अत्यधिक सम्मान है। यह आदर स्वतंत्रता और अधिकार के प्रति है। वह सच्ची स्वतंत्रता हैउनकी स्वतंत्रता नहीं, जो हमें बेड़ियों में कसना चाहते हैं, बल्कि उन लोगों की स्वतंत्रता है जिन्होंने गुलामी की जंजीरों के विरुध्द बंदूकें उठाई हैं।
मि.(राष्ट्रपति) जॉनसन, हमारी क्रांति एक अन्य तरह की स्वतंत्रता का दावा करती है! और वह जो क्यूबा छोड़कर साम्राज्यवादियों के साथ रहने के लिए जाना चाहते हैं, वह लोग जो साम्राज्यवादियों के लिए काम करने कांगो और वियतनाम जाना चाहते हैं, वे यह सब कर सकते हैं। सभी जानते हैं कि साम्राज्यवादियों की ओर से नहीं, बल्कि क्रांतिकारियों की ओर से जब भी लड़ाई के लिए आवश्यकता होती है, इस देश के प्रत्येक नागरिक ने कभी इनकार नहीं किया है।
यह एक स्वतंत्र देश है मि. जॉनसन, सभी के लिए स्वतंत्र ! और वह मात्र एक पत्र नहीं था, इसके अलावा हमारे पास अन्य साथियों के पत्र और शुभकामनाएं आ चुकी हैं। ये पत्र 'मेरे बच्चों के लिए' या 'मेरे माता-पिता के लिए' हैं। हम इन सभी पत्रों को उनसे संबंधित रिश्तेदारों और साथियों को देंगे। लेकिन इसके बावजूद हम उनसे यह अनुरोध भी करेंगे कि वे इन पत्रों को क्रांति को समर्पित कर दें, क्योंकि हमें विश्वास है कि ये दस्तावेज इतने महत्वपूर्ण हैं कि वे इतिहास का हिस्सा बनेंगे।
मुझे विश्वास है कि अब सभी चीजों की व्याख्या हो गई है। यहां हमें यही सब बताना था। बाकी को शत्रुओं की चिंताओं के लिए छोड़ देते हैं। हमारे सामने पर्याप्त लक्ष्य हैं, कई कार्य हैं जिन्हें पूरा करना है। अपने देशवासियों और विश्व के प्रति कई कर्तव्यों को निभाना है, और हम सब उसे पूरा करेंगे।
(अपराजेय योद्धा चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रो,अनुवाद-जितेन्द्र गुप्ता,2011,ग्रंथ शिल्पी,नई दिल्ली से साभार)

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