मई 16, 2011

हरियाणा में पोलेटेकनिक प्राध्यापकों और विद्यार्थियों पर लाठीचार्ज , गिरफ्तारियां .....

छात्रों पर भी डंडा
एआईएसऍफ़ द्वारा समर्थन में छात्र आन्दोलन , हजारों छात्रों द्वारा परीक्षायों का बहिष्कार .........
हरियाणा १६ मई |पॉलीटेक्निक अंतिम वर्ष की परीक्षा शुरू होने से पहले हंगामा हो गया।पॉलीटेक्निक की दस अलग-अलग ट्रेड में अंतिम वर्ष के परीक्षार्थियों का पेपर था |कई जिलों में छात्र परीक्षा नहीं दे सके।  वेतन बढ़ाने की मांग के लिए धरने पर बैठे शिक्षकों को उठाने के लिए पुलिस ने सिरसा में लाठियां बरसाईं और कई शिक्षकों को हिरासत में ले लिया। अम्बाला में 81 शिक्षकों को हिरासत में लेकर 39 पर केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। उधर, सोनीपत में  व सिरसा में भी शिक्षकों को गिरफ्तार किया गया। शाम को इन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया।शिक्षकों के हंगामे का असर परीक्षा पर भी पड़ा। व्यवस्था इतनी गड़बड़ा गई कि पेपर समय पर नहीं हुए और हजारों विद्यार्थी परीक्षा देने से वंचित रह गए |शिक्षकों के समर्थन में ,  परीक्षा दोबारा करवाने की मांग को लेकर सिरसा  में एआईएसऍफ द्वारा रोड जाम कर सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया गया | यहाँ कई विद्यार्थिओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया , पर संगठन के दबाव में जल्द ही रह कर दिया गया | यहाँ महिला और ब्वाएज़ दोनों कालजों में परीक्षायों का बहिष्कार किया गया |अम्बाला के राजकीय कालेज में छात्रों ने तोडफ़ोड़ की। आदमपुर व सिरसा में छात्र-छात्राओं ने परीक्षाओं का बहिष्कार कर दिया। राजकीय कालेजों के सैकड़ों छात्र परीक्षा नहीं दे पाए। झज्जर में पेपर ही नहीं हुआ |राजकीय बहुतकनीकी संस्थान झज्जर में सुबह के सत्र का पेपर ही नहीं हो सका वहीं शाम के सत्र में अव्यवस्था दिखाई दी | सोनीपत में शिक्षा केंद्र पर शिक्षकों ने ताला जड़ दिया जिस कारण छात्र पेपर देने से वंचित रह गए |छात्रों को पुलिस ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और उन्हें वहां से खदेड़ दिया। एआईएसऍफ की राज्य परिषद ने छात्रों और शिक्षको पर लाठीचार्ज और गिरफ्तारी की कड़े तेवर अपनाते हुए कहा है की परीक्षायों के समय तक सरकार द्वारा शिक्षक आन्दोलन को हल न कर पाने से हजारों छात्रों का भविष्य अन्धकारमय हो गया है , जिसकी जिम्मेदार प्रदेश सरकार है  |  सरकार और प्रशाशन की तानाशाही को विद्यार्थी बर्दाशत नहीं करेंगे | प्रदेश में आज हजारों विद्यार्थियों की परीक्षा प्रभावित हुई है , सरकार दोबारा परीक्षा को आयोजित करे तथा शिक्षकों से बातचीत द्वारा तुरंत प्रभाव से आन्दोलन का समाधान करे | एआईएसऍफ ने कहा है की अगर सरकार ने परीक्षा को दोबारा आयोजित करने से इनकार कर दिया तो प्रदेश भर के विद्यार्थी सड़कों पर उतरेंगे | वहीं तकनीकी शिक्षा विभाग ने पुन: पेपर की किसी संभावना से इनकार किया है। 
सिरसा में प्राध्यापक को गिरफ्तार करती पुलिस




मई 14, 2011

2011 के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव : पार्टीवार नतीजे



तमिलनाडु
कुल विधानसभा सीटें 234
पार्टी
2011 जीते / आगे
2006
एआईएडीएमके
150
61
डीएमडीके
33
00
डीएमके
23
96
सीपीएम
10
09
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
9
06
कांग्रेस
5

अन्य + निर्दलीय
00
09
पश्चिम बंगाल
कुल विधानसभा सीटें 294
पार्टी
2011 जीते / आगे
2006
तृणमूल कांग्रेस
184
30
कांग्रेस
42
21
सीपीएम
40
175
फॉरवर्ड ब्लॉक
11
23
आरएसपी
07
20
सीपीआई
02
-
समाजवादी पार्टी
01
-
अन्य + निर्दलीय
07
06
असम
कुल विधानसभा सीटें 126
पार्टी
2011 जीते
2006
कांग्रेस
78
53
एआईयूडीएफ
18
10
एजीपी
10
24
बीओपीएफ
12
13
बीजेपी
5
10
अन्य
2
-
केरल
विधानसभा चुनाव सीटें 140
पार्टी
2011 जीते
2006
सीपीएम
45
61
कांग्रेस
38
24
एमयूएल
20
07
सीपीआई
13
17
केईसीएम
09
07
आरएसपी
02
-
एनसीपी
02
-
जेडी (एस)
04

अन्य
07
-
पुडुचेरी
कुल विधानसभा सीटें 30
पार्टी
2011 जीते
2006
एआईएनसीआर
15
03
कांग्रेस
7
10
डीएमके
2
07
एडीएमके
5
01
आईएनडी
0/1

मई 11, 2011

कविता से पहले एक मिनट का मौन ...


इससे पहले कि मैं यह कविता पढ़ना शुरू करूँ
मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें
ग्यारह सितम्बर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में मरे लोगों की याद में
और फिर एक मिनट का मौन उन सब के लिए जिन्हें प्रतिशोध में
सताया गया, क़ैद किया गया
जो लापता हो गए जिन्हें यातनाएं दी गईं
जिनके साथ बलात्कार हुए एक मिनट का मौन
अफ़गानिस्तान के मज़लूमों और अमरीकी मज़लूमों के लिए
और अगर आप इज़ाजत दें तो
एक पूरे दिन का मौन
हज़ारों फिलस्तीनियों के लिए जिन्हें उनके वतन पर दशकों से काबिज़
इस्त्राइली फ़ौजों ने अमरीकी सरपरस्ती में मार डाला
छह महीने का मौन उन पन्द्रह लाख इराकियों के लिए, उन इराकी बच्चों के लिए,
जिन्हें मार डाला ग्यारह साल लम्बी घेराबन्दी, भूख और अमरीकी बमबारी ने
इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ
दो महीने का मौन दक्षिण अफ़्रीका के अश्वेतों के लिए जिन्हें नस्लवादी शासन ने
अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया। नौ महीने का मौन
हिरोशिमा और नागासाकी के मृतकों के लिए, जहाँ मौत बरसी
चमड़ी, ज़मीन, फ़ौलाद और कंक्रीट की हर पर्त को उधेड़ती हुई,
जहाँ बचे रह गए लोग इस तरह चलते फिरते रहे जैसे कि जिंदा हों।
एक साल का मौन विएतनाम के लाखों मुर्दों के लिए --
कि विएतनाम किसी जंग का नहीं, एक मुल्क का नाम है --
एक साल का मौन कम्बोडिया और लाओस के मृतकों के लिए जो
एक गुप्त युद्ध का शिकार थे -- और ज़रा धीरे बोलिए,
हम नहीं चाहते कि उन्हें यह पता चले कि वे मर चुके हैं। दो महीने का मौन
कोलम्बिया के दीर्घकालीन मृतकों के लिए जिनके नाम
उनकी लाशों की तरह जमा होते रहे
फिर गुम हो गए और ज़बान से उतर गए।

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ।
एक घंटे का मौन एल सल्वादोर के लिए
एक दोपहर भर का मौन निकारागुआ के लिए
दो दिन का मौन ग्वातेमालावासिओं के लिए
जिन्हें अपनी ज़िन्दगी में चैन की एक घड़ी नसीब नहीं हुई।
४५ सेकिंड का मौन आकतिआल, चिआपास में मरे ४५ लोगों के लिए,
और पच्चीस साल का मौन उन करोड़ों गुलाम अफ्रीकियों के लिए
जिनकी क़ब्रें समुन्दर में हैं इतनी गहरी कि जितनी ऊंची कोई गगनचुम्बी
इमारत भी न होगी।
उनकी पहचान के लिए कोई डीएनए टेस्ट नहीं होगा, दंत चिकित्सा के रिकॉर्ड
नहीं खोले जाएंगे।
उन अश्वेतों के लिए जिनकी लाशें गूलर के पेड़ों से झूलती थीं
दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम

एक सदी का मौन
यहीं इसी अमरीका महाद्वीप के करोड़ों मूल बाशिन्दों के लिए
जिनकी ज़मीनें और ज़िन्दगियाँ उनसे छीन ली गईं
पिक्चर पोस्ट्कार्ड से मनोरम खित्तों में --
जैसे पाइन रिज वूंडेड नी, सैंड क्रीक, फ़ालन टिम्बर्स, या ट्रेल ऑफ टियर्स।
अब ये नाम हमारी चेतना के फ्रिजों पर चिपकी चुम्बकीय काव्य-पंक्तियाँ भर हैं।
तो आप को चाहिए खामोशी का एक लम्हा ?
जबकि हम बेआवाज़ हैं
हमारे मुँहों से खींच ली गई हैं ज़बानें
हमारी आखें सी दी गई हैं
खामोशी का एक लम्हा
जबकि सारे कवि दफनाए जा चुके हैं
मिट्टी हो चुके हैं सारे ढोल।
इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ
आप चाहते हैं एक लम्हे का मौन
आपको ग़म है कि यह दुनिया अब शायद पहले जैसी नहीं रही रह जाएगी
इधर हम सब चाहते हैं कि यह पहले जैसी हर्गिज़ न रहे।
कम से कम वैसी जैसी यह अब तक चली आई है।

क्योंकि यह कविता ९/११ के बारे में नहीं है
यह ९/१० के बारे में है
यह ९/९ के बारे में है
९/८ और ९/७ के बारे में है
यह कविता १४९२ के बारे में है।*

यह कविता उन चीज़ों के बारे में है जो ऐसी कविता का कारण बनती हैं।
और अगर यह कविता ९/११ के बारे में है, तो फिर :
यह सितम्बर ९, १९७१ के चीले देश के बारे में है
यह सितम्बर १२, १९७७ दक्षिण अफ़्रीका और स्टीवेन बीको के बारे में है,
यह १३ सितम्बर १९७१ और एटिका जेल, न्यू यॉर्क में बंद हमारे भाइयों के बारे में है।

यह कविता सोमालिया, सितम्बर १४, १९९२ के बारे में है।

यह कविता हर उस तारीख के बारे में है जो धुल-पुँछ रही है कर मिट जाया करती है।
यह कविता उन ११० कहानियो के बारे में है जो कभी कही नहीं गईं, ११० कहानियाँ
इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में जिनका कोई ज़िक्र नहीं पाया जाता,
जिनके लिए सीएनएन, बीबीसी, न्यू यॉर्क टाइम्स और न्यूज़वीक में कोई
गुंजाइश नहीं निकलती।
यह कविता इसी कार्यक्रम में रुकावट डालने के लिए है।

आपको फिर भी अपने मृतकों की याद में एक लम्हे का मौन चाहिए ?
हम आपको दे सकते हैं जीवन भर का खालीपन :
बिना निशान की क़ब्रें
हमेशा के लिए खो चुकी भाषाएँ
जड़ों से उखड़े हुए दरख्त, जड़ों से उखड़े हुए इतिहास
अनाम बच्चों के चेहरों से झांकती मुर्दा टकटकी
इस कविता को शुरू करने से पहले हम हमेशा के लिए ख़ामोश हो सकते हैं
या इतना कि हम धूल से ढँक जाएँ
फिर भी आप चाहेंगे कि
हमारी ओर से कुछ और मौन।
अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो रोक दो तेल के पम्प
बन्द कर दो इंजन और टेलिविज़न
डुबा दो समुद्री सैर वाले जहाज़
फोड़ दो अपने स्टॉक मार्केट
बुझा दो ये तमाम रंगीन बत्तियां
डिलीट कर दो सरे इंस्टेंट मैसेज
उतार दो पटरियों से अपनी रेलें और लाइट रेल ट्रांजिट।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन, तो टैको बैल ** की खिड़की पर ईंट मारो,
और वहां के मज़दूरोंका खोया हुआ वेतन वापस दो। ध्वस्त कर दो तमाम शराब की दुकानें,
सारे के सारे टाउन हाउस, व्हाइट हाउस, जेल हाउस, पेंटहाउस और प्लेबॉय।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो रहो मौन ''सुपर बॉल'' इतवार के दिन ***
फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई के रोज़ ****
डेटन की विराट १३-घंटे वाली सेल के दिन *****
या अगली दफ़े जब कमरे में हमारे हसीं लोग जमा हों
और आपका गोरा अपराधबोध आपको सताने लगे।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो अभी है वह लम्हा

इस कविता के शुरू होने से पहले।

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फ़ुट नोट :

* १४९२ के साल कोलम्बस अमरीकी महाद्वीप पर उतरा था।
** टैको बैल : अमरीका की एक बड़ी फास्ट फ़ूड चेन है।
*** ''सुपर बॉल'' सन्डे : अमरीकी फुटबॉल की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के
फाइनल का दिन। इस दिन अमरीका में गैर-सरकारी तौर पर राष्ट्रीय छुट्टी हो
जाती है।
**** फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई : अमरीका का ''स्वतंत्रता दिवस'' और राष्ट्रीय
छुट्टी का दिन। ४ जुलाई १७७६ को अमरीका में ,''डिक्लरेशन ऑफ
इंडीपेंडेंस'' पारित किया गया था।
***** डेटन : मिनिओपोलिस नामक अमरीकी शहर का मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर।

एमानुएल ओर्तीज़ मेक्सिको-पुएर्तो रीको मूल के युवा अमरीकी कवि हैं। वह
एक कवि-संगठनकर्ता हैं और आदि-अमरीकी बाशिन्दों, विभिन्न प्रवासी
समुदायों और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए सक्रिय कई प्रगतिशील संगठनों से
जुड़े हैं। उन्होंने इस कविता को 11 सितम्बर, 2002 में लिखा।  हिंदी अनुवाद असद जैदी ने किया है।

मई 07, 2011

समाजवादी आन्दोलन की सैधान्तिक भूल .....

1886 से 2011 तक 125 वर्ष बीत जाने के बाद भी कार्य दिवस का समय वही आठ घंटे है , जबकि मशीन की बेहतरी ने लोगों को काम से बाहर धकेलने का काम लगातार जारी रखा है | काम के घंटों को कम करने का केंद्रीय कानून बनाने की मांग वाले कार्यक्रम पर संघर्ष न करना अंतर्राष्ट्रीय मजदूर और युवा आन्दोलन की सबसे बड़ी सैधान्तिक भूल है और ठहराव का कारण भी ...
- रोशन सुचान 

बात 14 जुलाई 1889 की है , जब लगभग 20 देशों के श्रमिक वर्ग के प्रतिनिधि पेरिस के मजदूर अधिवेशन में पहुंचे थे | मकसद बहुत बड़ा था , मेहनतकशों के हक़ की लड़ाई को आगे बढ़ाना | इस अधिवेशन को इतिहास में दूसरे इंटरनेशनल के नाम से जाना जाता है | मार्क्स की मृत्यु(1883) के बाद उनका सैधान्तिक मित्र फ्रेडरिक एंगल्ज इस अधिवेशन को दिशा देने वाला था | पहले इंटरनेशनल का सम्मेलन 28 सितम्बर 1864 को शुरू हुआ था | जिसमें खुद मार्क्स ने नेतृत्व किया था | एंगल्ज तब से ही मार्क्स का सबसे नजदीकी सैधान्तिक मित्र था | दोनों ने 1848 में पूंजी की वैश्विक एकजुटता के विरुद्ध दुनिया भर के मेहनतकशों को एक हो जाने का निमंत्रण दिया था | तब औद्दोगिक क्रांति और मशीनीकरण बढ़ रहा था | सो उत्पादन में वृद्धि हुई और मुनाफा बढ़ा | फलस्वरूप बेरोज़गारी में भारी वृद्धि हुई , मशीन ने लोगों को काम से बाहर धकेल दिया था | पर श्रमिक वर्ग को उस बढ़े हुए मुनाफे से कोई हिस्सेदारी मिलना तो दूर , काम के घंटे भी निश्चित नहीं थे | इस अंतराष्ट्रीय    महाधिवेशन ने मुनाफे में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने तथा मशीनीकरण से बढ़ रही बेरोज़गारी को दूर करने के उद्देश्य से काम के घंटों को घटाने के लिए संघर्ष का आह्वान किया था | इनका प्रमुख उद्देश्य " Reduction of Working Hours " दर्ज किया गया था | 1886 में मजदूरों को 8 घंटे काम के लिए संघर्ष करने के लिए कहा गया | अमेरिका के शिकागो में 8 घंटे कार्य दिवस के लिए संघर्ष तेज़ हुआ | 3 लाख 50 हज़ार लोगों ने इसमें भाग लिया | हुकूमत ने जुल्म किया , फांसियां दी गई और गोलिया चली , सड़कों पर खून बहा | आखिरकार 2 लाख लोगों ने 8 घंटे के कार्य दिवस को जीत लिया | दूसरे इंटरनेशनल ने पहले इंटरनेशनल के काम को आगे बढ़ाया | हर देश में 8 घंटे के कार्य दिवस के लिए संघर्ष शुरू हुआ | इस नारे को मिला समर्थन और जीत भी मिसाल बनी | एंगल्ज ने उसी शाम को लिखा "42 वर्ष पहले जब हमने दुनिया भर के मेहनतकशों एक हो का नारा दिया , तब बहुत कम आवाजों ने सुर में सुर मिलाया था | आज जब मैं ये शब्द लिख रहा हूँ तो यूरोप और अमेरिकी मजदूर पहली बार लामबंद होकर अपनी जुझारू शक्तियों का जायजा ले रहे हैं | 8 घंटे का कार्यदिवस कानून द्वारा स्थापित किया जाए | जैसा कि 1866 में इंटरनेशनल की जेनेवा कांग्रस में एलान किया गया था और आज की झांकी इस तथ्य के बारे में सभी देशों के पूंजीपतियों और भूमिपतियों की आँखें खोल देगी कि आज सचमुच सभी देशों के मेहनतकश एकजुट हैं | काश! अगर मार्क्स इसे अपनी आँखों से देखने के लिए मेरे साथ होता |" अब सोचने की बात ये है की 1886 में जब काम के घंटे 8 हुए थे , तब से लेकर आज तक 125 वर्षों में मशीन का विकास कितने गुना बढ़ा है | पर कार्यदिवस वही 8 घंटों का ही है | मानव सभ्यता का इतिहास इस बात का गवाह है की प्रत्येक नईं खोज मनुष्य के जीवन को बेहतर से और बेहतर करती गई है | प्रत्येक नईं मशीन मनुष्य के काम को हल्का और उसकी जरूरतों की पूर्ति के लिए ज्यादा उत्पादन करती गई | 1970 के दशक में आई विज्ञानिक - तकनीकी क्रांति के बल पर आज दुनियाँ ऐसी अद्भुत मशीनों की मालिक है , जिसका मानव जाती की भलाई में प्रयोग करने पर इस धरती पर सभी को स्वर्ग जैसी जिन्दगी दी जा सकती है | जरूरत है तो बस मानवता के भले के लिए फिक्रमंद एक आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने की | पर पूंजीवादी प्रबंध हर नई खोज को मानवता की भलाई के लिए प्रयोग करने को तैयार नहीं है | तकनीकी क्रांति और आधुनिक मशीनों ने उत्पादन में इतनी अराज़कता पैदा कर दी है की उत्पादन खरीदने वाले नहीं हैं , वहीं मजदूर वर्ग को काम से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है | मशीन की बेहतरी से बेरोज़गारी में खतरनाक वृद्धि हो रही है | 1987 में 500 बड़ी कम्पनियां 5 प्रतिशत श्रमशक्ति द्वारा 25 प्रतिशत उत्पादन कर रही थीं |वहीं 2007 में 500 बड़ी कम्पनियां 0.05 प्रतिशत श्रमशक्ति द्वारा 25 प्रतिशत उत्पादन कर रही हैं | ये है आधुनिक मशीन का कमाल | 21 वर्षों में यह अंतर 1/20 से 1/200 तक पहुंच गया है | आज का पूंजीवादी प्रबंध मानवविरोधी होने के कारण मशीन की लूट द्वारा अपने मुनाफे के ढेर को बड़ा कर रहा है | पूंजी कुछ ही हाथों में , यहाँ तक की एक ही हाथ में चले जाने का काम कर रहा है | एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की आबादी के महज़ 2 प्रतिशत लोगों के पास कुल दौलत का 50 फीसदी है , उससे नीचे वाले 8 प्रतिशत लोगों के पास 35 प्रतिशत दौलत है , नीचे वाले 20 प्रतिशत के पास 4 प्रतिशत , उससे नीचे वाले 20 प्रतिशत के पास 3 प्रतिशत , नीचे वाले 20 प्रतिशत लोगों के पास 2 प्रतिशत दौलत है , सबसे नीचे वाले 20 प्रतिशत लोगों के पास कुल दौलत का महज़ 1 प्रतिशत है | यानी की 20 प्रतिशत आबादी के पास 89 प्रतिशत और 80 प्रतिशत के पास भीख के रूप में महज़ 11 प्रतिशत दौलत है | भारत में सिर्फ 533 अमीर लोगों के पास 1232135 करोड़ रुपयों की संपत्ति है | सो इन परिस्थितियों में समाज के सामने धन का बंटवारा , श्रम उत्पादकता , बेरोज़गारी , कार्य दिवस का समय , वित्तीय पूंजी विचारणीय बिंदु हैं | 1886 से आज तक 125 वर्षों कार्य दिवस का समय वही आठ घंटे है , जबकि मशीन की बेहतरी से लोगों को काम से बाहर धकेलने का काम लगातार जारी है | काम के घंटों को कम करने का केंद्रीय कानून बनाने की मांग वाले कार्यक्रम के लिए संघर्ष पर ध्यान न देना अंतर्राष्ट्रीय मजदूर और युवा आन्दोलन की सबसे बड़ी सैधान्तिक भूल है और ठहराव का कारण भी | आज फिर पहले - दूसरे इंटरनेशनल की तरह जरूरत है , नए केंद्रीय संघर्ष के केंद्र की | जब ऐसा हुआ , ठहराव टूटेगा और जीत कर निकलेगा मजदूर- नौजवान वर्ग | इसलिए Reduction of Workers की जगह हमारा नारा होना चाहिए "  Reduction of Working Hours Without Pay Loss " | कार्य दिवस को तब तक छोटा करो ,जब तक सभी को काम न मिल जाए | 10 प्रतिशत तक कार्य दिवस को छोटा करने पर 11 प्रतिशत नए काम के अवसर पैदा होते हैं और 20 प्रतिशत तक कार्य दिवस को छोटा करने पर 25 प्रतिशत नए लोगों को काम मिलता हैं | 30 प्रतिशत तक कार्य दिवस को छोटा करने पर 42 प्रतिशत नए काम के अवसर पैदा होते हैं और 40 प्रतिशत तक कार्य दिवस को छोटा करने पर 66 प्रतिशत नए लोगों को काम मिलता हैं | 50 प्रतिशत तक काम के घंटों को घटाकर 4 घंटे का कार्य दिवस करने पर सभी को काम मिल जायगा | नौजवानों और ट्रेड यूनियंस के संगठनों को सभी लोगों को रोज़गार प्राप्ति के लिए , मानव शक्ति के नियोजन और कार्यदिवस को कानूनन छोटा करवाने की लड़ाई को मजबूत करने वाले आन्दोलन चलाने चाहियें | दुनिया भर की सरकारों को ललकारकर ये कहना होगा की 18 वर्ष के प्रत्येक युवा को (शिक्षित-अशिक्षित सभी को) काम देने की गारंटी का कानून बनाया जाए , और जब तक सरकार 18 वर्ष का होने पर काम देने में असफल है तो उसको काम के इंतज़ार में न्यूनतम वेतन के मुताबिक भत्ता दिया जाए ....... 
 - रोशन सुचान