मार्च 24, 2010

जेल नोटबुक-3.............

(नोटबुक का एक और पन्ना)





पृष्ठ 102



‘मार्क्सवाद बनाम समाजवाद’



(1908-12)

लेखक व्लादीमिर जी सिखोविच

पीएचडी कोलंबिया विश्वविद्यालय

वह एक-एक करके मार्क्स के सारे सिद्धांतों की आलोचना करते हैं और इन सभी को ख़ारिज करते हैं-

मूल्य का सिद्धांत

इतिहास की आर्थिक व्याख्या

संपदा का थोड़े से हाथों, अर्थात पूँजीपतियों के हाथों में संकेंद्रण, मध्यम वर्ग का पूरी तरह खात्मा और सर्वहारा वर्ग की बाढ़

बढ़ती गरीबी का सिद्धांत, जिसकी परिणति के तौर पर

आधुनिक राज्य और सामाजिक व्यवस्था का अपरिहार्य संकट.



वह निषकर्ष निकालते हैं कि मार्क्सवाद सिर्फ़ इन्हीं मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, और उन्हें एक-एक करके ख़ारिज करते हुए, निष्कर्ष के तौर पर कहते हैं कि क्रांति के जल्दी फूट पड़ने की सारी धुंधली आशंकाएँ अभी तक निर्मूल ही साबित हुई हैं. मध्यम वर्ग घट नहीं, बल्कि बढ़ रहा है. धनी वर्ग संख्या में बढ़ रहा है, तथा उत्पादन और उपभोग की प्रणाली भी परिस्थितियों के अनुसार बदल रही है, अतः मज़दूरों की दशा में सुधार करके किसी भी प्रकार के संघर्ष को टाला जा सकता है. सामाजिक अशांति का कारण बढ़ती गरीबी नहीं, बल्कि औद्योगिक केंद्रों पर गरीब वर्गों का संकेंद्रण है, जिसके नाते वर्ग-चेतना पैदा हो रही है. इसीलिए यह सब चिल्ल-पों है.



भगत सिंह की नोटबुक में दर्ज टिप्पणी



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पृष्ठ 124



जीवन का उद्देश्य



‘‘जीवन का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना नहीं बल्कि उसका सुसंगत विकास करना है, मरने के बाद मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि इस संसार में ही उसका सर्वोत्तम इस्तेमाल करना है, केवल ध्यान में ही नहीं, बल्कि दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव में भी सत्य, शिव और सुंदर का साक्षात्कार करना है, सामाजिक प्रगति कुछेक की उन्नति पर नहीं, बल्कि बहुतों की समृद्धि पर निर्भर करती है, और आत्मिक जनतंत्र या सार्वभौमिक भ्रातृत्व केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब सामाजिक-राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसर की समानता हो.’’



स्रोत अज्ञात



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