*जाने क्यों मुझे यह शक होता है कि यह सब सरकार की सोची समझी साज़िश है. एक तरफ़ तो अपने विश्वविद्यालयों को नख-दंत विहीन करते जाओ, उनके संसाधनों में लगातार कटौती करके उन्हें बरबाद करते जाओ, और दूसरी तरफ़ पहले निजी विश्वविद्यालयों का और फिर विदेशी विश्वविद्यालयों का रास्ता साफ़ करो. ज़ाहिर है कि जिन विद्यार्थियों के पास थोड़े भी साधन होंगे वे आपके सरकारी विश्वविद्यालयों से विमुख ही होंगे. तब सरकार को अपने ही विश्वविद्यालयों की लानत-मलामत करते हुए उन पर ताला लगाने का मौक़ा मिल जाएगा.
Dr Durgaprasad Agrawal Jaipur
*विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी शाखाएं खोलने की अनुमति देना तब तक उचित नहीं है, जब तक भारत में प्राथमिक कक्षाओं से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा में व्याप्त अमीरी-ग़रीबी जैसी गंभीर खाई का दोहरापन समाप्त करके एकरूपता नहीं लाई जाती. नहीं तो यह भारत के दलितों और ग़रीबों के साथ भारी अन्याय होगा. क्योंकि चालाक लोग वर्तमान दोहरी शिक्षा व्यवस्था को समाप्त भी नहीं करना चाहते और विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षा में आरक्षण भी नहीं देना चाहते. ऐसा क्यों?
सिद्धार्थ कौसलायन आर्य ग्रेटर नौएडा-भारत
Added: 3/19/10 7:19 AM GMT
*देश में विदेशी विश्वविद्यालयों के आने का मतलब है उच्च शिक्षा से ग़रीब आदमी का और दूर हो जाना. अगर सरकार देश की उच्च शिक्षा संस्थानों के विकास और गुणवत्ता मं सुधार के लिए कोई क़ानून लाए तो जनहित में कहा जा सकता है. इसकी कौन गारंटी देगा कि विदेशी विश्वविद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहय्या कराएगी. यह क़दम ग़रीबों को उच्च शिक्षा से और दूर करने की साज़िश है.
धनॅजय नाथ
जादोपुर, गोपालगॅज, बिहार भारत
*कोई फ़ायदा नहीं होगा.विदेशी विश्वविद्यालय देश का पैसा अपने देश में ले जाएँगे और बहुत बढ़िया पढ़ाई भी नहीं होगी.
ashutosh jasrotia