*मैं ये सोच रहा हूं कि कब मेरा भारत बढ़ेगा. अंग्रेज़ चले गए अंग्रेज़ी छोड़ गए. मेरे विचार से यह सौ फ़ीसदी सही है. आज हमारे बीच अमरीकी, ब्रितानी और यूरोपियन कंपनियां हैं जो भारत से सस्ते मज़दूर हासिल कर रही हैं और काफ़ी पैसे बना रही हैं. उन्होंने ने पाया है कि भारतीय उनकी शिक्षा को अहमियत देते हैं इसलिए अब वह उस क्षेत्र में भी पैसे बनाना चाहते हैं. कोई बताए कि वे हमें कैसे पढ़ाएंगे जबकि उनके अपने ही देश में अनपढ़ हैं या 12वीं पास हैं. वे सिर्फ़ पैसे चाहते हैं. वे अब ग़रीब हो चुके हैं.
naveen hindustan
Added: 3/19/10 3:09 PM GMT
*कपिल सिब्बल जी के अनुसार देश के 22 करोड़ लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन 2 करोड़ लोग ही शिक्षा प्राप्त कर पा रहे हैं. क्या कपिल सिब्बल जी इसके पीछे छिपे कारणों की तरफ़ ध्यान दिया है. देश के 32 करोड़ लोगों की दैनिक मज़दूरी का औसत जब 30 रुपए प्रतिदिन आता है तो वे कहाँ से उच्च शिक्षा के लिए शुल्क जुटा पाएँगे. कपिल सिब्बल जी को चाहिए कि पहले देश के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारें तब विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में लाने के बारे में सोचें.
तारकनाथ शुक्ल धुले , महाराष्ट्र
Added: 3/19/10 2:55 PM GMT
*मेरे विचार से भारत के किसी भी हिस्से में विदेशी स्कूल नहीं खुलने दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे भारतीय संस्कृति प्रभावित होगी. जिस प्रकार अमरीकी अपने माता-पिता, भाई-बहन की परवाह नहीं करते, वे काफ़ी शराब पीते हैं जब भारतीय उन्हें देखेंगे तो वे वैसा ही करने लगेंगे. मेरे विचार से भारत में विदेशी स्कूल खोलना कोई अच्छा विचार नहीं है. मैं अमरीका में हूं और स्कूल में पढ़ता हूं, यहां का स्कूल इतना बुरा है कि कह नहीं सकता. कोई पढ़ाई नहीं होती और शिक्षकों को भी कोई मतलब नहीं. भारतीय स्कूल बेहतर हैं.
vikram singh new delhi
Added: 3/19/10 2:55 PM GMT
*यह भारतीय छात्रों के लिए अच्छा नहीं है कि विदेशी विश्वविद्यालयों की शाखा यहां खुले और उन्हें भारतीय शिक्षा मैदान में आने का मौक़ा दिया जाए. पश्चिमी देश हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब का लाभ उठाना चाह रहे हैं. भारत में उनकी शाखाए खोलने का अर्थ है कि उनकी सभ्यता और संस्कृति का यहां प्रचार करना और लोगों को यह जताना कि ग़रीबों के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है. अगर हमरी सरकार उन्हें यहां आने की इजाज़त दे रही तो उसका कोई तो माप-दंड होगा ही.
zaid arif falahi AMU aligarh
Added: 3/19/10 9:30 AM GMT
*लाजवाब, उच्च वर्ग भारतीय समाज के लिए एक और उपलब्धि, लेकिन यह ग़रीब भारतीय छात्रों के लिए एक और परेशानी का कारण होगा कि उन्हें निजी क्षेत्रों में नौकरियों की और भी कमी हो जाएगी. यह ग़रीब-मज़दूर वर्ग की एक और हार है.
Dinesh Kumar New Delhi ..........................