मार्च 28, 2010

सिर्फ कमाई करने आएंगे विदेशी संस्थान

विदेशी शिक्षण संस्थानों के देश में आने से जुड़े खतरों को रेखांकित कर रहे हैं प्रो. यशपाल.............................................
विदेशी शिक्षण संस्थानों (विश्वविद्यालयों) के लिए दरवाजे खोलने के पीछे सरकार के अपने लाख तर्क हो सकते हैं, लेकिन देश में उच्च शिक्षा में सुधार की अहम् सिफारिशें करने वाले प्रख्यात शिक्षाविद्, वैज्ञानिक और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व चेयरमैन प्रो. यशपाल को नहीं लगता कि विदेशी शिक्षण संस्थानों को देश में आने के लिए नया कानून बनने से कुछ भला होने वाला है। उनका मानना है कि विदेशी संस्थान यहां आकर कमाई तो करेंगे, लेकिन हमारी जरूरतों को कतई पूरा नहीं करेंगे। विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश के प्रस्तावित कानून पर विशेष संवाददाता राजकेश्वर सिंह ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश- सरकार ने हाल ही विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों (विश्वविद्यालयों) को भारत में खोलने के लिए प्रस्तावित विधेयक के मसौदे को हरी झंडी दी है। आप किस रूप में देखते हैं? सवाल यह है कि यहां कौन से विश्वविद्यालय आयेंगे? विश्वविद्यालय का मतलब जहां सभी तरह की पढ़ाई हो। दुनिया में सबसे बेहतरीन उच्च शिक्षा देने वाले लंदन की कैम्बि्रज समेत दूसरी तमाम यूनिवर्सिटी में एक ही कैम्पस में सभी तरह की पढ़ाई होती है। क्या नया कानून बन जाने पर वे यहां आएंगे? हां, यदि कुछ आयेंगे तो वे भी पूरे नहीं आयेंगे, बल्कि उनके टुकड़े यहां आएंगे। अमेरिका की हावर्ड जैसी यूनिवर्सिर्टी तो यहां बनेगी नहीं, क्योंकि उन्हें उनकी सरकार से बहुत मदद मिलती है। सरकार ने 2020 तक उच्च शिक्षा में सकल दाखिला दर (जीईआर) बढ़ाकर 30 प्रतिशत करने की लक्ष्य बनाया है, जो अभी 12 प्रतिशत से कुछ अधिक है। सरकार का तर्क है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के आने से जीईआर बढ़ेगा। यह मजाक है। क्या वे बस्तर जैसे जिले और देहाती इलाकों में विश्वविद्यालय खोलने आयेंगे? क्या वे शैक्षिक के साथ हमारी सामाजिक जरूरतों को पूरा करेंगे? क्या वे हिंदी, संस्कृत, इतिहास, दर्शन शास्त्र जैसे विषयों को पढ़ाएंगे? वे यहां इंजीनियरिंग, प्रबंधन जैसे दूसरे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को पढ़ाने आयेंगे? अभी भी हमारे इंजीनियरिंग कालेजों से सस्ती पढ़ाई कहीं नहीं होती। इन स्थितियों में विदेशी संस्थान भी वैसे खुलेंगे, जैसे तमाम डीम्ड यूनिवर्सिटी बन गई हैं। साफ है कि सभी अच्छे संस्थान तो यहां आयेंगे नहींऔर जो आयेंगे वे पैसा बनायेंगे और चले जाएंगे। आपके हिसाब से जीईआर को बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है? मौके हैं। तमाम ढेर सारे कालेज हैं। उनमें संसाधन है। जगह है। मेरा मानना है कि दो-चार जो बड़े-बड़े कालेज हैं उन सबको यूनिवर्सिटी बना दीजिए, जो बनने लायक हैं। सरकार उनकी मदद करे। उनके भी कमरों को एयरकंडीशंड बना दीजिए। तमाम विश्वविद्यालय बन जाएंगे। बड़ी बात यह होगी कि उनमें सारे विषय तो पढ़ाये जाएंगे और तब उसका असर उच्च शिक्षा में जीईआर बढ़ाने में भी दिखेगा। यह भी कहा जा रहा है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के आने से उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मिलेगी? कहां से मिलेगी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा। बिजनेसमैन यूनिवर्सिटी खोलेगा तो पैसा कमाने के लिये। हमारे यहां भी तो बिजनेसमैन ने खोले हैं शिक्षण संस्थान और पढ़ाई का सत्यानाश करके रख दिया है। सुंदर-संुदर बिल्डिंग बना ली हैं, लेकिन अंदर कुछ नहीं है। मसलन् न बेहतर शिक्षक न बेहतर शिक्षा। ऐसे में विदेशी शिक्षण संस्थान बेहतर शिक्षक कहां से लायेंगे। आशंका है कि विदेशी संस्थान आयेंगे तो सबसे पहले हमारे यहां के अच्छे शिक्षकों पर उनकी नजर होगी। ऐसे में अपने यहां के अच्छे संस्थानों के शिक्षा के स्तर में गिरावट आ सकती है। मै तो कह ही रहा हूं कि यदि उन संस्थानों में कानून, भाषा, कला, विज्ञान, मेडिकल जैसे सभी पाठ्यक्रमों की पढ़ाई नहीं होती तो उन्हें विश्वविद्यालय नहीं कहा जा सकता। अलग-अलग पढ़ाई का अवसर देने को शिक्षा नहीं कहा जा सकता। साथ में पढ़ने का अलग असर होता है। यदि वे आते हैं तो उन्हें इकोनोमिक्स जैसे विषयों की भी पढ़ाई की सुविधा देनी चाहिए। इसका मतलब है कि विदेशी शिक्षण संस्थानों के भारत में आने को लेकर सरकार बड़े बदलाव का जो तर्क दे रही है, वह बेमानी है। नहीं, मेरा मानना है कि ये चीजें ऐसे नहीं होती। अभी जो होने जा रहा है, उनमें कुछ विदेशी संस्थान आयेंगे। कैम्पस बनायेंगे। पैसे कमाएंगे। उनमें से कुछ चलेंगे। कुछ नहीं चल पायेंगे। देश में एक तबके के बच्चों में विदेश में पढ़ाई का बड़ा रुझान है। पहले बहुत होनहार बच्चे ही बाहर जाते थे पढ़ाई करने। अब ऐसे भी हैं जिनको यहां अच्छे संस्थानों में दाखिला नहीं मिलता, वे बाहर चले जा रहे हैं। वह होटल मैनेजमेंट व हेयर स्टाइल और सुंदर बनाने जैसे कोर्स करने जा रहे हैं। उनके पास पैसा है और उन्हें बाहर पढ़ने का शौक है। जबकि अपने यहां भी एक से एक बढ़कर उच्च शिक्षण संस्थान हैं। मै बता सकता हूं। हमारे यहां भी टाटा रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे अच्छे से अच्छे संस्थान हैं, जहां पीएचडी के बहुत अवसर हैं। जेएनयू में साइंस की कितनी अच्छाई पढ़ाई होती है, लोगों को पता नहीं है। ऐसा नहीं है कि बाहर सारी चीजें चमक रही हैं। देखिए, आस्ट्रेलिया में क्या हो रहा है? विदेशी शिक्षण संस्थानों के भारत में प्रवेश संबंधी विधेयक के मसौदे में छात्रों के दाखिले की प्रक्रिया, फीस के तौर-तरीकों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। विधेयक आरक्षण पर भी चुप है। इसको लेकर सवाल उठने लगे हैं। विदेश में अमेरिका समेत सभी जगहों पर आरक्षण है। कालेज में है। इंडस्ट्री में है। नीग्रो वगैरह के लिए वे अपने यहां अलग से अवसर देते हैं। ऐसे में यह सवाल तो है ही कि क्या वे यहां के वंचित लोगों को यह मौका देंगे या नहीं? सरकार जीईआर बढ़ाने की बात कर रही है, लेकिन जब वंचितों को मौका ही नहीं मिलेगा तो फिर उनका जीईआर बढ़ेगा कैसे? जीईआर की बात करते हैं तो शिक्षा का अधिकार कानून छह से 14 साल तक के बच्चों के लिए ही क्यों? उसे 18 साल के बच्चों के लिए करिए। सेंट्रल स्कूल जैसी शिक्षा दीजिए। वे भी तो हमने बनाये हैं। तब देखिए जीईआर बढ़ता है कि नहीं। पिछली सरकार में वामदलों के विरोध के कारण यह विधेयक संसद में नहीं पेश हो सका। अब कुछ दूसरे दल भी इसका विरोध कर रहे हैं। क्या इन दलों को नजरअंदाज कर सरकार का आगे बढ़ना ठीक है? हमें तो लगता है कि बीजेपी इसका विरोध नहीं करेगी और कपिल जी (मानव संसाधन विकास मंत्री) जैसा सोचते हैं, वह बीजेपी की सोच है। वह भी शाइनिंग इंडिया वाले हैं। बीजेपी में बहुत लोगों के बच्चे बाहर पढ़ने जाते हैं। जिसने भी पैसे कमाए हैं वह कह रहा है कि चलो अब बच्चे को बाहर पढ़ाते हैं।