यहाँ जब पुष्प खिलते हैं, भ्रमर भी दूर रहते है...
अजब है बात पुष्पों का, बहुत नमकीन पानी है...
तेरे अधरों के मोती, मुझपे गिरते, क्या बदल जाता...
ये मेरे भाग्य का तारा, बिखरता ना, सम्हल जाता...
तू बस इक बार थामे हान्थ कहती, घुप अंधेरा है...
मैं खातिर जगमगाने राह तेरी , खुद ही जल जाता...
तेरा ही नाम अब तक, मेरे दिल की सिलवटों में है....
तेरी ही याद के घावों की पीड़ा, करवटों में है...
मैं कैसे त्याग की भाषा, दहेकते मन को समझाऊं...
ये राधा सा खड़ा अब तक, वहीं यमुना तटों पे है...
मिटा सब ग्यान अब मेरा, मैं समझाऊं भला कैसे...
ये मन बच्चा मेरा, इसको, मैं बहलाऊं भला कैसे...
जो अब तक घूमता था बस, तेरे ही दिल की गलियों मे...
उसे आँसू के सागर मे , मैं तैराऊ भला कैसे....
मैं इस दिल मे नही कोई नया, अब स्वप्न बुनता हूँ...
हमारे प्यार की बस, अधखिली कलियों को चुनता हूँ...
मैं बंधन तोड़ कर सारे,समाजों के, रिवाजों के....
मैं सुनता हूँ कभी अब तो, बस अपने दिल की सुनता हूँ.....
तुझे पाना नहीं, बस चाहने की चाह अब मुझको...
ये स्वप्नो मे अधूरा सा मिलन, स्वीकार अब मुझको...
चिता की मैं जलन सह लूँ, मगर ये सह ना पाऊँगा...
निशानी जग से मिट जाए, मैं आऊँ याद तब तुझको...