बाजारवाद के इस युग में उसी का बच्चा आगे बढेगा जिसके माता- पिता में शिक्षा को खरीदने की ताकत होगी ?? शिक्षा संस्थाय़ें अब शिक्षा मंदिर नहीं रहीं , अब तो ये एजूकेशनल शोप्स हैं ?? ये शिक्षकों के रेस्ट हाउसिज हैं और शिक्षकों के घर शिक्षा की आढतें ? टयूशन नक़ल करने का बीमा और पास कराने की गारंटी है ?? जाति और धर्म की राजनीति करने वाले नेता हैं इनके मालिक ?
राजनैतिक अखाड़े भी हैं और मुनाफा देने वाला व्यापार भी ? जातिवाद और सांप्रदायिकता के बीज इसी उपजाऊ भूमि में अंकुरित और पल्वित होकर सड़कों पर आते हैं .शिक्षा संस्थाएं तो ऐसे कारखाने बनने चाहीएँ थे , जहाँ बेहतर इंसान बनते ??