दिसंबर 07, 2010
यादों मैं है अब भी वो सुरीला जो जहाँ था................
हाँ हाँ ..यादों मैं है अब भी वो सुरीला जो जहाँ था ,हमारे हाथों में रंगीन गुब्बारे थे और दिल में महकता समां था वो तो ख्वाबों की थीं दुनिया ..वो किताबों की थी दुनिया ...साँस में थे हमारे कई जलजले और दिल में सुहाना समां था !वो जमीं थी असमान था ...लेकिन हमको क्या पता था हम खड़े थे जहाँ ..उसी के किनारे गहरा सा अँधा कुआँ था ....फिर वो आये भीड़ बनकर. हाथ में थे उनके खंजर बोले फेंको ये किताबें और सम्हालो ये सलाखें ,,ये जो अँधा सा कुआँ है ..ये तो अँधा ही नहीं है ,इस कुँए में है खजाने ,,,कल की दुनिया तो यहीं है !कूद जाओ लेके खंजर ..काट डालो जो है अन्दर ..तुम ही कल के हो शिवाजी ..तुम ही कल के हो सिकंदर .....!!!हम ने वो ही किया जो उन्होंने किया ...क्योंकि उनकी तो ख्वाइश यही थी हम ने वो ही किया जो उन्होंने कहा क्योकि उनकी फरमाइश यही थी ...!!!अब हमको लगा जयका खून का ..अब बताओ हमें अब करें क्या !!!!!