अप्रैल 24, 2011

दादा या दीदी में से कौन ?

  पश्चिम बंगाल : क्या चुनाव पूर्व सर्वे का अंकगणित गलत साबित होने वाला है ...............
विधानसभा चुनावों के कारण पश्चिम बंगाल चर्चा में है | चुनाव में ममता दीदी द्वारा पैसा पानी की तरह बहाए जाने और अमेरिकी तंत्र की शर्मनाक भूमिका के बावजूद एक बार फिर से चुनाव पूर्व सर्वे गलत साबित होने वाले हैं | देश और दुनिया की निगाहें 13 मई पर हैं | सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या 35 वर्षों से सत्ता पर काबिज़ 10 पार्टियों का गठबंधन वाममोर्चा बंगाल में लगातार अपनी 8 वीं जीत दर्ज कर लाल झंडा फहराने जा रहा है या फिर ममता दीदी बैठने वाली है सिहासन पर ? दादा और दीदी में से कौन होगा बंगाल की 15 वीं विधानसभा का मुख्यमंत्री ? जनता तय करने वाली है | वाममोर्चा 1977 में सी.पी.आई.(ऍम) के नेतृत्त्व में सत्ता पर काबिज़ हुआ था जो 34 साल के लम्बे अंतराल के बाद आज भी कायम है | भूमि सुधार लागू करने वाले देश के चंद राज्यों में से बंगाल पहला राज्य था , जहां वाममोर्चा ने 23 लाख एकड़ भूमि को बेजमीनों में बाँट दिया था | आज 84 प्रतिशत बंगालियों के पास अपनी भूमि है | वहीं 10 लाख भूमिहीन मजदूरों को मकान बनाने के लिए जमीनें दी गई | पंचायती राज़ व्यवस्था को सही मायने में लागू किया गया | सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूती से लागू कर राशन डीपू पर दो रूपए किलो चावल सहित रोजमर्रा की घरेलू जरूरतों की चोदह वस्तुएं उपलब्ध करवाई गई | जहां एक समय भूख से लोग मरते थे , वहां खाद्य सुरक्षा के मामले में बंगाल आत्मनिर्भर बना | पब्लिक सेक्टर को मजबूत किया गया | बड़े पैमाने पर सरकारी एंवम सहकारी क्षेत्र का विस्तार कर सरकारी शिक्षण संस्थानों , अस्पतालों को खोलकर मध्यम और निम्न वर्ग को मुफ्त शिक्षा -चिकित्सा उपलब्ध करवाई गई | फिर क्या था वाममोर्चा बंगाल में अपनी जड़ें जमाता गया और ज्योतिबसु के नेतृत्त्व में वाममोर्चे ने 1977 से लेकर 2000 तक देश के सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड भी बनाया | वाममोर्चे ने प्रत्येक चुनाव में विरोधियों को धूलें चटा दीं | लेकिन महत्व्पूर्ण सवाल ये उठता है की जिन किसानों को वाममोर्चे ने लाखों एकड़ जमीनें दी ,वो ही लोग अब सी.पी.आई.(ऍम) के विरुद्ध लट्ठ क्यूँ उठा रहे हैं ?  क्यूँ गरीबों- मजदूरों की हमदर्द कही जाने वाली पार्टी और वाममोर्चा इतना कमजोर हो गया की उसे लोकसभा से पंचायत चुनावों तक ममता गठबंधन ने दिन में तारे दिखा दिए | लोकसभा की 42 सीटों में से ममता गठबंधन को 25 सीटें मिली और वाममोर्चा  महज़ 16 पर ही सिमट कर रह गया | कारण था सिंगूर और नंदीग्राम की घटनाएं | टाटा नेनो प्रोजेक्ट , पेट्रो केमिकल हब के लिए जमीन अधिग्रेहन करने की वकालत सी.पी.(ऍम) को  भारी पड़ रही है | पo बंगाल की जनता वाममार्गी दृष्टीकोण से पार्टी के अलग हो जाने और ममता द्वारा वाममार्गी दृष्टीकोण का अनुसरण कर ( चाहे ये नाटक ही सही ) भूमि अधिग्रहन के विरुद्ध डट कर खड़े होने पर दीदी के साथ जुड़ गई | हालात बिगड़ने पर सिंगूर में टाटा नेनो प्रोजेक्ट वाले स्थान पर नक्सलियों और ममता ने न सिर्फ कब्ज़ा कर लिया बल्कि सी.पी.(ऍम) के सैंकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया | सी.पी.(ऍम) ने अपने कार्यकर्ताओं को अलोकतांत्रिक तरीके से हथियार थमाकर उनकी गुंडागर्दी के जवाब में मुकाबला करने के निर्देश दिए | ख़ूनी संघर्ष में दोनों तरफ से लोग मरे | सिंगूर और नंदीग्राम के बिगड़े हालातों के बल पर ममता ने आम चुनावों और पंचायत चुनावों में वाममोर्चे का किला हिलाकर रख दिया | पर सवालों का सवाल ये है कि क्या नंदीग्राम और सिंगूर वाममोर्चे पर इतने भारी पड़ने वाले हैं की बंगाल से मोर्चा अब सत्ता से दूर होने वाला है ? निस्संदेह सी.पी.(ऍम) ने बहुत भारी गलती की है , लेकिन बावजूद इसके सच्चाइ ये भी है की सी.पी.(ऍम) का पार्टी संगठन ममता -कांग्रस से अभी भी मजबूत है ,  जिसके सहारे वाममोर्चा भूल सुधारने की बात कहकर अपनी नैया पार लंघाने का प्रयतन कर रहा है | बंगाल के मुख्यमंत्री ने अपने नेताओं को जनता से अपनी भूलों के लिए माफी मांगने के भी निर्देश दिए है..ताकि एक चांस और मिल जाए।बुद्धदेव भट्टाचार्य का कहना है , "जहां तक सिंगूर का सवाल है, हमने उससे सबक लिया है। हमारा उद्देश्य हालांकि अच्छा था। लेकिन नंदीग्राम में हम कभी भूमि अधिग्रहण के लिए नहीं गए। हमने नोटिस दिया कि हम भूमि का अधिग्रहण नहीं करेंगे। इन मामलों से हमने सबक लिया कि भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर हमें बेहद सावधान रहने की जरूरत है।" भट्टाचार्य ने राज्य के विकास के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक बताते हुए कहा कि उद्योगों की स्थापना के लिए भूमि अधिग्रहण के वक्त सावधानी बरती जाएगी। वाममोर्चे के लिए सुखद बात ये है की तृणमूल से सम्मानजनक समझोता न हो पाने कि वजह से कांग्रस के नेता बागी हो गए हैं और बी.जे.पी. के गम्भीरता से चुनाव लड़ने से भी मोर्चा बागो बाग़ है |
दो चरणों का मतदान हो चुका है | सी.पी.(ऍम) ने 294 में से 56 महिलायों सहित 149 नए युवा उमीदवारों को मैदान में उतारा है | पहले दौर की 54 में से फिलहाल 41 पर वाममोर्चा, कांग्रेस गठबंधन 12 और एक सीट तृणमूल के पास है। वोट शेयर के हिसाब से देखें तो 47 फीसद वाममोर्चे को..27 फीसद कांग्रेस को..19 फीसद तृणमूल की मिला था। दीपा दासमुंशी, मौसम नूर और अधीर चौधरी का असंतुष्ट खेमा इस गठबंधन की उम्मीदों की पलीता लगा सकता है। दूसरी तरफ, बीजेपी ने बंगाल में उपस्थिति दर्ज कराने की नीयत से अपने तमाम बड़े नेताओं का मैदान में उतारा है। उत्तरी बंगाल में बीजेपी की मौजूदगी इस बार वोट शेयर में अपना हिस्सा पिछली बार की तुलना में और लोकसभा चुनाव की तुलना में भी बढ़ाने वाली है |
उधर दार्जिलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, जीएनएलएफ और एवीएवीपी जैसे कई कोणों के उभरने से वोट बंटेंगे। ऐसी परिस्थिति में काडर आधारित पार्टी सीपीएम वाममोर्चा के साथ फायदा उठाने की पुरजोर कोशिश में है। बाहरी उम्मीदवारों की वजह से तृणमूल के पुराने कार्यकर्ताओं में भी जरुरी जोश नहीं है। सीपीएम ने बंगाल में गद्दी बचाने के लिए वही रणनीति अपनाई है जो नीतिश ने बिहार के इस बार के चुनाव में अपनाई थी। यानी काम कम और और उसका प्रचार ज्यादा। सीपीएम के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर लालू जैसे प्रतिद्वंद्वी को नीतिश ने जनता में सिर्फ उम्मीद जगाकर दोबारा सत्ता से बाहर कर दिया तो हम ममता को क्यों नही एक बार और सत्ता से दूर रख सकते। सीपीएम को उत्तरी बंगाल की इन 54 में से कम से कम 38 सीटें हासिल होंगी। बीजेपी 3 सीटों पर उम्मीद लगाए बैठी है लेकिन शायद ही उसका खाता खुल पाए। तृणमूल को 5 से कम सीटें मिलेंगी। गोरखा नामधारी पार्टियों खासकर विमल गुरंग की जीजेएम अपनी पारी की शुरुआत करेगी। उसे शायद तीन सीटें हासिल हो जाएं। कांग्रेस 6 के आसपास रहेगी। उसे भीतरघात का सामना करना होगा। उधर
कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा ममता के मंसूबे पर पानी फेर सकता है।
चुनाव के दूसरे दौर की बात करें तो तीन जिले, 50 सीटें और 293 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है।
 लेकिन दूसरे दौर में सीटें कांग्रेस के असर या जो भी थोड़ा जनाधार है—उसकी सीटें है।
  लेकिन माना जा रहा है कि रायगंज से सांसद दीपा दासमुंशी, मालदा उत्तर से मौसम नूर और 
 बरहामपुर के सांसद और रसूख वाले नेता अधिरंजन चौधरी के पंसदीदा उम्मीदवारों के टिकट कट 
 गए। नतीजतन, चौधरी तृणमूल के मिले मुर्शिदाबाद जिले के 4 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को 
 और यह सिर्फ दीदी की जिद की वजह से है। कांग्रेसी इस बात से भी खफा है कि पूरे दक्षिणी बंगाल में कांग्रेस को महज 20 सीटें मिली हैं और पिछले 6 बार से विधायक रहे राम पियारे राम का पत्ता भी ममता ने साफ कर दिया। अब राम निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है। जबकि 7 विधायक दक्षिणी बंगाल से थे। अब कहा जा रहा है कि बाकी के 6 में से 3 विधायक भी अपनी सीट बचा लें तो खैरियत हो। उधर उत्तरी बंगाल के पांच जीतने न लायक सीटें ममता ने कांग्रेस का पाले में ठेल दीं।
उधर एसयूसीआई ने भी दीदी की मुसीबतें बढ़ा दी हैं है। तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी रही इस पार्टी ने 17 कांग्रेसी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। और इस बगावत से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मानस भुइयां भी नहीं बचे। एसयूसीआई ने उनके खिलाफ भी अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। लगता है की दीदी की लहर को पलीता लगने वाला है और लोकसभा चुनावों जैसी एकतरफा जीत की  पुनरावृति होने वाली नहीं है |  सो बिकाऊ मीडिया के चुनाव पूर्व सर्वे का अंकगणित एक बार फिर से गलत साबित होने वाला हैं | स्टार न्यूज़ की निल्सन क. द्वारा करवाए गए सर्वे को ही लें | स्टार न्यूज़ ने ममता -कांग्रस गठबंधन को 215 और वाममोर्चे को 74 सीटें देकर कहा है की लोकसभा चुनावों के दोरान से तृणमूल का वोट प्रतिशत 3.5 प्रतिशत तक बड़ गया है और वाममोर्चे का 4 प्रतिशत घट गया है | एक दूसरे सर्वे ओआरजी- हेडलाइन्ज टुडे ने तृणमूल को 182 , वाम को 101 सीटें दी हैं | ये सर्वे पेड न्यूज़ का एक नमूना है | पहले भी गलत साबित हो चुके हैं ये पोल | 2004 के लोकसभा चुनावों के दोरान एनडीटीवी-इंडियन एक्सप्रेस द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक एनडीए-बीजेपी गठबंधन को 287 -307 सीटों का दावा किया गया था , जबकि उनको  181   सीटें ही आई थी | अकेली बीजेपी  को 190 - 210 सीटो पर जीतने  का अनुमान लगया  था ,  पर उसे 138 सीटें  मिली थी | यूपीए को 143 -163 सीटें मिलने की उम्मीद जताई गई थी , जबकि  उसे 216 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी | अकेली कांग्रेस को 95 -105 सीटें सर्वे द्वारा दी गई थी , पर  कांग्रेस ने 145 सीटों पर जीत प्राप्त की थी | वहीं 2007 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी यह सर्वे दूसरी बार गलत साबित हुआ था  |
बहुजन समाज पार्टी को एनडीटीवी द्वारा 117 -127 , स्टार द्वारा 137 , सीएनएन - आईबीएन द्वारा 152 -168 सीटों पर जीतने का दावा किया गया था , जबकि बी.एस.पी. को 206 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी | वहीं समाजवादी पार्टी को एनडीटीवी द्वारा 113 -123 , स्टार द्वारा 96 , सीएनएन - आईबीएन द्वारा 95 -111 पर जीत का अनुमान लगाया गया था , पर समाजवादी पार्टी को अनुमानों के विपरीत 97 सीटें मिलीं | बीजेपी को तब एनडीटीवी द्वारा 108 -118 , स्टार द्वारा 108 , सीएनएन - आईबीएन द्वारा 80 -90 सीटें दी गई थी , पर वोटों की गिनती के बाद बीजेपी को 51 सीटें ही मिली थी | वहीं 2001 के बंगाल विधानसभा चुनावों में भी सर्वे द्वारा ममता दीदी को विजयी दिखाते हुए , दि वीक ने वाममोर्चे  को 105 -115 , एशियन न्यूज़ ने 125 -135 , टाइम्स आफ इंडिया ने 110 -130 , आउटलुक द्वारा 144 -155 सीटें दी गई थी , पर मोर्चे को शानदार 199 सीटें मिली थी | उधर दूसरी तरफ तृणमूल को दि वीक ने 170 -180   , एशियन न्यूज़ ने 141 -174   , टाइम्स आफ इंडिया ने 150 -175   , आउटलुक द्वारा 129 -139 सीटें दी गई थी , पर ममता को महज़ 86 सीटें पर ही संतोष करना पड़ा था | एग्जिट पोल के गलत होने का कारण है सर्वे का गलत आधार | यानी की स्टार न्यूज़ की निल्सन क. के सर्वे का आधार ये है की उसने केवल 163 विधानसभा सीटों के कुल 5 करोड़ 61 लाख मतदाताओं में से महज़ 29457 वोटरों के पोल लेकर 294 सीटों के चुनाव परिणामों का निर्धारण कर दिया | मतलब 0 .05 प्रतिशत वोटरों से पूछताछ कर स्टार न्यूज़-निल्सन क. ने नतीजा निकाल दिया की वाममोर्चा साफ़ होने वाला है | यह सर्वे हास्यास्पद होने के साथ-साथ तकनीकी और विज्ञानिक तोर पर भी गलत है तथा तृणमूल द्वारा प्रायोजित है , जिसे स्थानीय तृणमूल नेता सुकोन्तो बनर्जी द्वारा करवाया गया है | सर्वे के बाद टीम तृणमूल के दफ्टर में भी गई थी | मै यहाँ वाममोर्चे की पक्षपात नहीं कर रहा हूँ | पर हाँ वाम कमज़ोर जरुर हुआ है , इतना भी नहीं की उसे महज़ 148 सीटों का स्पस्ट बहुमत भी न मिल सके | सच्चाई ये है की पिछली बार विधानसभा में 294 में से 233 सीटें (दो तिहाई से भी ज्यादा) जीतने वाला वाममोर्चा अब एकदम से हाशिये पर जाने वाला नहीं है और अब आंकड़े एकदम से उलट क्रम में होने वाले नहीं हैं | एक बात तय है की चाहे लेफ्ट को बहुमत मिले या नहीं , पर तृणमूल को इतनी बड़ी सफलता मिलने वाली नहीं है | हाँ विधानसभा जरूर त्रिशंकु हो सकती है | परमाणु करार के मुद्दे पर यु.पी.ए से लेफ्ट द्वारा समर्थन वापसी को देश भर के लोगों ने न सिर्फ ठुकरा दिया था , बल्कि चुनावों में हाशिये पर भी ला दिया था | तब नंदीग्राम और सिंगूर की घटनाएं भी तब ताज़ा-ताज़ा थी | लोकसभा चुनावों के मुद्दे तब राष्ट्रीय थे | हाँ कांटे की टक्कर जरूर है , पर वामदल को लोकसभा चुनावों जैसी चुनोती अब बंगाल में नहीं है और ममता की लहर को आपसी गठबंधन में कलह , भीतरघात , गोरखों के कई कोणों मे उभरने , असंतुस्ट खेमे के इलावा बी.जे.पी द्वारा वोटों में छेद और एसयूसीआई द्वारा कांग्रस के विरुद्ध अपने उम्मीदवार  खड़े करने से जोर का झटका लग सकता है | बाकी हमे भी 13 मई का इंतज़ार है ......







1 टिप्पणी:

Bunti Jabalpuri ने कहा…

Dada baithe ya didi baithe! Bangal me kuch sudhare wala nahi! Karan hai aap ek nete se tab kuch badal sakte hain jab wo neta apne piche ek kargar team leke chale! dono ke pass team our tam spirit ka abhaw hai!