जनवरी 02, 2015

तुम लौट आओ ना कामरेड !

प्यारी कामरेड ,
प्यारी कामरेड , 
             
                       चाहे हर शब्द मेरे हाथों से 
                      तेरी तस्वीर बनकर निकलता है। 
                  जुबान का हर लफ्ज़ मुहँ से तानसेन की मधुर धुन में
                            तेरा ही संगीतमयी नाम लेता है। 

                                     फिर भी 
              इतने फाँसले बढ़ गए हैं तेरे और मेरे बीच 
             कमबख्त न्यूटन का आखरी नियम भी विफल हो चुका है। 
           चाहते हुए भी वक्ती तौर पे आलिंगन कर चूमना नहीं तुझे। 

                       तू समझ रही है ,
                तुझे हासिल करने के लिए 
           अण्डों में चूजे सा मचल रहा हूँ मैं। 
    अन्दर का ज्वारभाटा तूफान का रूप ले रहा है। 

                                                  बहुत भोली है तू 
                                            मोती को भी पत्थर समझ बैठी है। 
                                                   हाँ ये सही है 
                             तुझे मोम की देवी समझने की गुस्ताखी की है मैने। 

          मेरी महबूब , 
     मेरा भी जी करता है 
खोलूँ कोई मुहब्बत का दस्तावेज़ 
   जो मासूम गीतों को कहे 
तुझे मनाने और दिल की सुनाने के लिए। 

                     शायद तुझे अहसास नहीं है कॉमरेड 
                        दफन हो रही उन संवेदनाओं का 
                             लहू का पसीना बहाते हुए 
                          पेट की आग बुझाने में 
             अपने अंगों को चबाने वाले जीवन का। 
 

                             और हाँ ,
          गिददडों , बघियाड़ों और  मगरों के जबड़े तोड़ 
         मुझ सँग संग्राम की नायिका बनना है तुझे।

                                  हाँ ,
                   मैं अपनी हदें पार कर रहा हूँ
                              रोको मत
                 तुम लौट आओ ना कामरेड ! चाहे हर शब्द मेरे हाथों से
तेरी तस्वीर बनकर निकलता है।
जुबान का हर लफ्ज़ मुहँ से तानसेन की मधुर धुन में
तेरा ही संगीतमयी नाम लेता है।

फिर भी
इतने फाँसले बढ़ गए हैं तेरे और मेरे बीच
कमबख्त न्यूटन का आखरी नियम भी विफल हो चुका है।
चाहते हुए भी वक्ती तौर पे आलिंगन कर चूमना नहीं तुझे।
तू समझ रही है ,
तुझे हासिल करने के लिए
अण्डों में चूजे सा मचल रहा हूँ मैं।
अन्दर का ज्वारभाटा तूफान का रूप ले रहा है।
बहुत भोली है तू
मोती को भी पत्थर समझ बैठी है।
हाँ ये सही है
तुझे मोम की देवी समझने की गुस्ताखी की है मैने।
मेरी महबूब ,
मेरा भी जी करता है
खोलूँ कोई मुहब्बत का दस्तावेज़
जो मासूम गीतों को कहे
तुझे मनाने और दिल की सुनाने के लिए।
शायद तुझे अहसास नहीं है कॉमरेड
दफन हो रही उन संवेदनाओं का
लहू का पसीना बहाते हुए
पेट की आग बुझाने में
अपने अंगों को चबाने वाले जीवन का।

और हाँ ,
गिददडों , बघियाड़ों और मगरों के जबड़े तोड़
मुझ सँग संग्राम की नायिका बनना है तुझे।
हाँ ,
मैं अपनी हदें पार कर रहा हूँ
रोको मत
तुम लौट आओ ना कामरेड !

 - रोशन  सुचान
 
 

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