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अगस्त 15, 2011

छात्र आन्दोलन में ए .आई .एस.एफ. के 75 साल और चुनौतियां ....

प्लेटिनम जुबली समारोह ....
जंग- ए आज़ादी में मुख्य रोल निभाया था ए .आई .एस.एफ.  ने .....
शिक्षण संस्थानो को शिक्षाविदों की जगह शराबमाफिया , भूमाफिया , ठेकेदार , राजनेता आदि चला रहे हैं , इन संस्थानों में प्रतिभा की जगह धन का बोलबाला चल रहा है .  अब शिक्षा , रोज़गार , स्वास्थ्य सुविधाएँ ना देने वाली व्यवस्था के विरुद्ध जोरदार छात्र आन्दोलन का बिगुल फूंक देने का समय आ गया है  - रोशन सुचान
लखनऊ  में  एक  बार  फिर  से  इतिहास  ने अपने  आप  को  दोहराया  है .  12-13 अगस्त  को  देश  के  प्रथम छात्र  संगठन  आल  इंडिया  स्टुडेंट्स  फैडरेशन  ने इतिहास  रचते  हुए  अपना  75 वां (   प्लेटिनम जुबली )  स्थापना  दिवस  लखनऊ  के उसी  गंगा  प्रशाद   मेमोरिअल   हाल  में  मनाया ,   जहाँ  12 अगस्त  1936 को  संगठन  की  स्थापना   हुई  थी  . सम्मलेन  में आये  अधिकाँश प्रतिनिधियों को उसी छेदी लाल धर्मशाला मे ठहराया गया ,  जिसमे 1936 मे आए प्रतिनिधि को ठहराया गया था। यह वही धर्मशाला है जिसमे ठहर कर क्रांतिकारी रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने अपने साथियों के साथ 'काकोरी' अभियान की रूप-रेखा तैयार की थी। ये दोनों स्थान क्रांतिकारियों की कर्मस्थली रह चुकने के कारण किसी तीर्थ से कम  नहीं हैं।  
गंगा प्रशाद मेमोरिअल हाल के निकट का बाज़ार
उदघाटन भाषण सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्या न्यायाधीश हैदर अब्बास रजा साहब ने दिया जो खुद इस संगठन के कर्मठ नेता रह चुके हैं। अब्बास साहब ने A I S F को मजबूत बनाने के साथ-साथ छात्रों का आह्वान किया कि वे आज शिक्षा पर आए संकट और उस पर बढ़ते बाजारीकरण के प्रभाव को समाप्त करने की दिशा मे जोरदार आंदोलन चलाएं। बाद मे सी. पी. आई . नेता  अतुल  कुमार 'अनजान' ने अपने उद्बोधन मे बताया कि जस्टिस साहब ने अपने छात्र जीवन मे शिक्षा के प्रारम्भ हुये निजीकरण का तीव्र विरोध किया था और आंदोलन का सफल नेतृत्व किया था । 'अनजान' साहब ने यह भी बताया कि उस आंदोलन का नारा था-"यू पी के तीन चोर-मुंशी,गुप्ता,जुगल किशोर"। के एम मुंशी तब गवर्नर थे,चन्द्र्भानु गुप्ता मुख्यमंत्री और जुगल किशोर शिक्षा मंत्री थे। 

छात्र मार्च .......
मंच ...........
  सम्मलेन  को पूर्व छात्र नेता एस सुधाकर रेड्डी  (पूर्व सांसद ), अमरजीत कौर  ने  भी संबोधित किया . 13 अगस्त को "वर्तमान स्थितियों मे छात्रों की भूमिका" विषय पर एक गोष्ठी हुयी जिसमे प्रो .अशोक वर्धन ,प्रो .अली जावेद,राज्य सभा सदस्य का .अजीज पाशा ने प्रकाश डाला और छात्रों का मार्ग-दर्शन किया। ये सभी अपने समय के प्रभावशाली छात्र नेता रहे हैं. संगठन   के  राष्ट्रीय अध्यक्ष परमजीत ढाबां और महासचिव  अभय मनोहर टकसाल ने भविष्य मे शिक्षा विदों के सुझाव पर अमल करने का आश्वासन दिया और  कहा की खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह के महिमामंडन को रोका जाये जिनकी गवाही सरदार भगत सिंह की फांसी का आधार बनी थी। सम्मेलन मे शिक्षा पर घटते बजट की तीव्र आलोचना की गई और विदेशी विश्वविद्यालयों को खोले जाने की निन्दा कर मजबूत छात्र  आन्दोलन चलाने का आह्वान किया गया ...
प्रदर्शनी .........


दरअसल  ए .आई .एस.एफ. देश का  प्रथम छात्र   संगटन है , साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलन के दोरान  12 अगस्त 1936 को लखनऊ के गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल'में  ए .आई .एस.एफ. का  गठन हुआ था . सम्मेलन में 936 प्रतिनिधियों  ने भाग लिया था , जिसमें 200 स्थानीय और शेष 11 प्रांतीय संगठनों के प्रतिनिधि थे .  तब पंडित  जवाहर  लाल  नेहरु  ने  सम्मलेन  की  अध्यक्षता   की  थी , तो  मुहमद  अली  जिन्नाह  मुख्य अतिथि थे . जो  बाद  में  हिंदुस्तान  और  पाकिस्तान  के  प्रधान  मंत्री  बने  .
नेहरु-जिन्ना : सम्मेलन में
मोलाना  आज़ाद  और  प्रेम  नारायण  भार्गव  भी  स्थापना  दिवस   पर  मुख्य   रूप से  हाज़िर  थे  , जबकि  महात्मा गाँधी  , गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर , गफ्फार  खान  , सरोजनी  नायडू  सर तेज बहादुर सप्रू और श्रीनिवास शास्त्री सहित  देश  भर  के राष्ट्रीय  नेताओं  ने सम्मेलन  के  नाम  अपना  शुभकामना  सन्देश  भेजे . भगत सिंह , राजगुरु,सुखदेव के साथी भी इस संगठन के सदस्य रहे. प्रथम महामंत्री लखनऊ के ही प्रेम नारायण भार्गव चुने गए और अध्यक्ष पं.जवाहर लाल नेहरू  . अपने उद्घाटन भाषण में जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियांे का विश्लेषण करते हुए छात्रों से आजादी का परचम उठाने का आह्वान किया.  इसके अलावा अपने अध्यक्षीय भाषण में जिन्ना ने भी इस बात की खुशी जाहिर की कि देश के अलग-अलग जाति और समुदाय के लोग आज यहाँ पर एक साझे मकसद के लिए एकत्र हुए हैं .   

 
पटना में गोलियों से शहीद एआईएसएफ के छात्रों का स्मारक
   छात्र  संगठन  के  नेतृत्व  में छात्रों -  युवायों  ने  न  सिर्फ  1936 से  1947 तक  देश को  ब्रिटिश  उपनिवेशवाद  से  आज़ाद  करवाने  में  मुख्या  भूमिका  निभाई  , बल्कि  आज़ादी  के  बाद  भी  देश  भर  के  छात्रों  को सम्मानजनक  अधिकार  के इलावा  18 साल  की  उम्र  में  मतदान   का  अधिकार  , बस  पास  की  सुविधा  , शिक्षा  सम्बन्धी  अधिकार  , संस्थानों  का जनवादीकरण  , रोज़गार के  मसले  पर  सरकारों  से  आन्दोलन  कर बेरोज़गारी भत्ता  दिलवाने  में क्रन्तिकारी योगदान  दिया  है  . 

बढ़ रहे अरबपति
छात्र  आन्दोलन  के  इतिहास  में  75 वर्ष  पूरे  होने  पर  जहां  जश्न  मनाने  के  लिए  गोरव्शाली इतिहास  है  , वहीं  दूसरी  तरफ  पूंजीवाद के  पोषक  केंद्र  और  राज्ये  सरकारों  की  छात्र  विरोधी  नीतियों  के  कारण  देश  भर  के  छात्र  संकट  के  दौर  से  गुज़र  रहे  हैं  . यू पी ए-  दो  ने  शिक्षा  के क्षेत्र   को  भी  बाजारू  ताकतों के हवाले  कर  शिक्षा  में  अघोषित  आपातकाल  लागू  कर  दिया  है . ऐसे  दौर  में  जब  महंगाई   इतनी  हद  से  ज्यादा  बढ़ चुकी  है  की   देश  के  78 करोड़  लोग  20 रूपये  प्रतिदिन  पर  गुज़ारा  कर  रहे  हैं  , तो  निजी  शिक्षण  संस्थान  छात्रों  और  अभिभावकों  से  मोटा  पैसा  वसूल रहे हैं  , इन  संस्थानों  में  प्रतिभा  की जगह  धन  का  बोलबाला  चल  रहा  है  . भारत  जैसे  विशाल  देश के  लिए  3 फीसदी  शिक्षा  का  बज़ट  अपर्याप्त  एवं  असंतोषजनक  है  . करोड़ों बच्चे  पढ़ने  की उम्र  में  गेराज  , होटल  , कारखानों  , एवं  घरेलू  काम में  अपने  बचपन  की कहानी  गढ़  रहे  हैं  . दूसरी  तरफ सरकार  ने  शिक्षा  को  चंद  देशी -विदेशी  मुनाफाखोरों  के  हवाले  कर  दिया  है  , जो  शिक्षा  की दुकानें  लगाकर  अवाम  के  खून  पसीने  की  कमाई  को हड़प  रहे  हैं  . 

शिक्षा संस्थाय़ें अब शिक्षा मंदिर नहीं रहीं , अब तो ये  एजूकेशनल शोप्स हैं ?? ये शिक्षकों के रेस्ट  हाउसिज हैं और शिक्षकों के घर शिक्षा की आढतें ? टयूशन नक़ल करने का बीमा और पास कराने की गारंटी  है ?? जाति और धर्म की राजनीति  करने वाले नेता हैं इनके मालिक ?   राजनैतिक अखाड़े भी हैं और मुनाफा देने वाला व्यापार भी ? जातिवाद और सांप्रदायिकता के बीज इसी उपजाऊ भूमि में अंकुरित और पल्वित होकर सड़कों पर आते हैं .शिक्षा संस्थाएं तो ऐसे कारखाने बनने चाहीएँ थे , जहाँ बेहतर इंसान बनते ?? सरकार  ने  अपनी  जिम्मेदारी  से  भागकर  अमीरजादों  की  तिजोरियों  और  तोंदों  को  मोटा  करने  के  लिए  लुटेरों  के  आगे  आत्मसमर्पण  कर  दिया  है  और  अब धन  की  कमी  का  रोना  रोकर  विदेशी  पूंजी  को  भी  शिक्षा  में  निवेश  करने  के  लिए  आमंत्रित  करने  जा  रही  है  , जिससे  विदेशी  निजी  विश्वविद्यालयों  के  रास्ते खुल  जायेंगे  . वहीं  11 लाख  करोड़ के बज़ट  में  से  5 लाख  करोड़  रूपये  कारपोरेट  जगत  को  तमाम  छूटों  और  रियाएतों  की   शकल  में  दिए  जा  रहे  हैं  . 


 ब्रिटेन से देश की  यू. पी .ए .सरकार को सीख लेनी चाहिए , जहां विश्वविद्यालयों की ऊंची फ़ीस चुकाने के लिए विद्यार्थी देह व्यापार करने से लेकर पोर्न फिल्मों में काम करने को मजबूर हो रहे हैं. बी.बी.सी की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के किंग्स्टन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रान रोबर्ट्स के सर्वेक्षण में एक चौंकानेवाला तथ्य सामने आया है कि ब्रिटेन में उच्च शिक्षा के भारी खर्चों को उठाने के लिए लगभग 25 फीसदी विद्यार्थियों को देह व्यापार में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ब्रिटेन ही नहीं, अमेरिका में भी हालात कुछ खास बेहतर नहीं हैं. अमेरिकी कालेज बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में स्नातक की डिग्री हासिल करनेवाले दो-तिहाई छात्रों पर औसतन 20 हजार डालर का शिक्षा कर्ज होता है जबकि उनमें से 10 फीसदी 40 हजार डालर से अधिक के कर्ज में डूबे होते हैं.  अमेरिका और ब्रिटेन ही नहीं, अधिकांश विकसित पूंजीवादी देशों में लगातार महंगी होती उच्च शिक्षा आम विद्यार्थियों के बूते से बाहर होती जा रही है. यह भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक सबक है जहां सरकार और नीति-निर्माताओं को लगता है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सभी समस्याओं का हल अमेरिकी और पश्चिमी उच्च शिक्षा व्यवस्था की आंख मूंदकर नक़ल करना हैं
शिक्षण  संस्थानो को  शिक्षाविदों  की  जगह   शराबमाफिया    , भूमाफिया  , ठेकेदार , राजनेता  आदि  चला  रहे  हैं  , जिनका  शिक्षा  से  दूर  दूर  तक  कोई  वास्ता नहीं  . सरकार   और  प्रशाशन  की  मिलीभगत   के  कारण  6-14 वर्ष  के  बच्चों  को  निजी  स्कूलों  में  मुफ्त  शिक्षा  का  मोलिक  अधिकार  कागज़ी  बनकर  रह  गया  है  , सुप्रीम  कोर्ट  के  निर्देशों  के  बावजूद  केंद्र  और  राज्ये  सरकारें  एक  दूसरे  पर  जवाबदेही  डालकर  भाग  रही  हैं  . 

छात्र  संघ  के  चुनावों का  जनतांत्रिक   अधिकार  जो  लम्बी  लड़ाई  द्वारा  प्राप्त  किये  गये थे  , लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों  के बावजूद सरकारें  उनको  ठेंगा  दिखा  रही   हैं  . देश के अधिकांश राज्यों के विश्वविद्यालयों और कालेजों में छात्रसंघ के चुनाव नहीं हो रहे हैं. यहां तक कि केंद्र सरकार द्वारा लिंगदोह समिति की सिफारिशों को लागू करने और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद अधिकांश राज्य सरकारों और विश्वविद्यालय प्रशासनों की छात्रसंघ बहाल करने और उनका चुनाव कराने में कोई दिलचस्पी नहीं दिख रही है. उनका आरोप है कि छात्रसंघ परिसरों में गुंडागर्दी, अराजकता, तोड़फोड़, जातिवाद, क्षेत्रवाद और अशैक्षणिक गतिविधियों के केन्द्र बन जाते हैं जिससे पढाई-लिखाई के माहौल पर असर पड़ता है. उनकी यह भी शिकायत है कि इससे परिसरों में राजनीतिकरण बढ़ता है जिसके कारण छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों में गुटबंदी, खींच-तान और संघर्ष शुरू हो जाता है जो शैक्षणिक वातावरण को बिगाड़ देता है.  ऐसा नहीं है कि इन आरोपों और शिकायतों में दम नहीं है. निश्चय ही, पिछले कुछ दशकों में छात्र राजनीति से समाज और व्यवस्था में बदलाव के सपनों, आदर्शों, विचारों और संघर्षों के कमजोर पड़ने के साथ अपराधीकरण, ठेकेदारीकरण, अवसरवादीकरण और साम्प्रदायिकीकरण का बोलबाला बढ़ा है और उसके कारण छात्रसंघों का भी पतन हुआ है. इससे आम छात्रों की छात्रसंघों और छात्र राजनीति से अरुचि भी बढ़ी है. इस सच्चाई को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि अधिकांश परिसरों में इन्हीं कारणों से आम छात्र, शिक्षक और कर्मचारी भी छात्र राजनीति और छात्रसंघों के खिलाफ हो गए हैं. विश्वविद्यालयों के अधिकारियों ने इसका ही फायदा उठाकर परिसरों में छात्र राजनीति और छात्रसंघों को खत्म कर दिया है. लेकिन सवाल यह है कि छात्र राजनीति और छात्रसंघों के यह पतन क्यों और कैसे हुआ और उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या इसमें मोरल हाई ग्राउंड लेनेवाले राजनेताओं, अफसरों और विश्वविद्यालयों के अधिकारियों की कोई भूमिका नहीं है?


सच यह है कि छात्र राजनीति को भ्रष्ट, अवसरवादी, विचारहीन और गुंडागर्दी का अखाडा बनाने की सबसे अधिक जिम्मेदारी कांग्रेस, भाजपा और मुख्यधारा के अन्य राजनीतिक दलों के जेबी छात्र संगठनों- एन.एस.यू.आई, ए.बी.वी.पी, छात्र सभा, छात्र जनता आदि की है. असल में, वे इसलिए सफल हुए क्योंकि छात्र राजनीति के एजेंडे से जब बड़े सपने, लक्ष्य, आदर्श, विचार और संघर्ष गायब हो गए तो छात्र संगठनों और छात्र नेताओं को भ्रष्ट बनाना आसान हो गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि छात्रसंघों के खत्म हो जाने के बावजूद परिसरों में रामराज्य आ गया है. यहां यह कहना जरूरी है कि परिसरों में छात्र राजनीति और छात्रसंघों का होना न सिर्फ जरूरी है बल्कि इसे संसद से कानून पारित करके अनिवार्य किया जाना चाहिए. आखिर विश्वविद्यालयों और कालेजों के संचालन में छात्रों की भागीदारी क्यों नहीं होनी चाहिए? दूसरे, छात्रों के राजनीतिक प्रशिक्षण में बुराई क्या है? क्या उन्हें देश-समाज के क्रियाकलापों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए?


वास्तव में, आज अगर विश्वविद्यालयों डिग्रियां बांटने का केन्द्र बनाने के बजाय देश में बदलाव और शैक्षणिक पुनर्जागरण का केंद्र बनाना है तो उसकी पहली शर्त परिसरों का लोकतंत्रीकरण है. इसका मतलब सिर्फ छात्रसंघ की बहाली नहीं बल्कि विश्वविद्यालय के सभी नीति-निर्णयों में भागीदारी है. इसके लिए जरूरी है कि सिर्फ शिक्षकों और कर्मचारियों ही नहीं, छात्रों को भी विश्वविद्यालय के नीति निर्णय करनेवाले सभी निकायों में पर्याप्त हिस्सेदारी दी जाए. आखिर विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक बेहतरी में सबसे ज्यादा स्टेक और हित छात्रों के हैं, इसलिए उनके संचालन में छात्रों की भागीदारी सबसे अधिक होनी चाहिए. इससे परिसरों के संचालन की मौजूदा भ्रष्ट नौकरशाह व्यवस्था की जगह पारदर्शी, उत्तरदायित्वपूर्ण और भागीदारी आधारित व्यवस्था बन सकेगी. जैसाकि भारतीय पुनर्जागरण के कविगुरु टैगोर ने कहा था, “जहां दिमाग बिना भय के हो, जहां सिर ऊँचा हो, जहां ज्ञान मुक्त...उसी स्वतंत्रता के स्वर्ग में, मेरे प्रभु मेरा देश (या विश्वविद्यालय) आँखें खोले.” इस स्वतंत्रता के बिना परिसरों में सिर्फ पैसा झोंकने या उन्हें पुलिस चौकी बनाने या विदेशी विश्वविद्यालयों के सुपुर्द करने से बात नहीं बननेवाली नहीं है. साफ है कि छात्रसंघों और छात्र राजनीति का विरोध वास्तव में, न सिर्फ अलोकतांत्रिक बल्कि तानाशाही की वकालत है.



वहीं  इतनी  महंगी  शिक्षा  के  बावजूद युवा  हाथों  में  डिग्रियां  लेकर  खून  के  आंसू रो  रहे  हैं  , उन्हें  प्रबंध  द्वारा  काम  नहीं  दिया  जा  रहा  है . बेरोज़गारी  सुरसा के मुहं की तरह बढ़ रही  है  . देश  भर  में  26 करोड़  युवा  बेरोजगार  हैं  . शहरों   के  कुल  युवाओं  में  से  60 फीसदी  और  गांवों  में  45 फीसदी  बरोजगारी  है  . शहरी  भारत  में  हर  साल   1 करोड़  नयें  बरोजगार  जुड़ते  हैं  , जो  काम की  तलाश  में  रहते हैं  . यू पी ए सरकार  ने  रोज़गार  देने  की  बजाए  1 करोड़  लोगों  को  काम से  बाहर  का रास्ता   दिखा  दिया  है  , जिससे  युवा  ही  नहीं  पूरा  मेहनतकश  वर्ग  ही  निराशा  के  दौर  से  गुज़र  कर   तनाव  , नशा  और  आत्महत्या  की  अंधी  खाई  की  और   अग्रसर  नज़र  आ  रहा  है  . उसे  अपनी  समस्याओं   का  कोई  समाधान  नज़र  नहीं  आ  रहा  , ऐसे परिस्थियों  में  जब  एआईएसऍफ़   अपना  75   वां  स्थापना  दिवस मना  रहा  है  तो  शिक्षा  , रोज़गार  , स्वास्थ्य   सुविधाएँ ना  देने  वाली  व्यवस्था  के विरुद्ध  छात्र  आन्दोलन  का  बिगुल  फूंक  देने  का  समय  आ  गया  है  . इस दौर में शासक वर्गों की ओर से युवाओं को बदलाव की चेतना और आन्दोलनों से दूर रखने और इन आन्दोलनों को कमजोर करने की योजनाबद्ध कोशिश हुई है और कहना पड़ेगा कि उन्हें काफी हद तक कामयाबी भी मिली है. भारतीय शासक वर्ग को मालूम है कि दुनिया के जिस देश में भी उसकी ५० फीसदी से अधिक आबादी २५ साल से कम की हुई है, वहां सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल और परिवर्तनों की लहर को रोकना असंभव हो गया है.



सो ये  वक़्त  छात्रों  - युवाओं  के  जागने  का  वक्त  है  . समाज  में  व्याप्त  गैरबराबरी , नाइंसाफी  को  चुपचाप  देखते  रहने  की  बजाए भगत सिंह के रास्ते  फिर  से  शिक्षा  और  रोज़गार  के  मसले  पर  जुझारू  संघर्ष  करने  का  इतिहास इंतज़ार  कर  रहा है ...........
- रोशन सुचान

अगस्त 09, 2011

भारतीय आज़ादी आंदोलन मे युवा/छात्रों का योगदान .....

देश के लिए मर मिटने वाले छात्रों- युवाओं की याद में .......
पटना में गोलियों से शहीद एआईएसएफ के छात्रों का स्मारक

1922 ई .मे गांधी जी द्वारा चौरी-चौरा कांड के नाम पर असहयोग आंदोलन वापिस लेने पर युवा/छात्र क्रान्ति की ओर मुड़े । क्रांतिकारी आंदोलन को चलाने और बम आदि बनाने हेतु काफी धन की आवश्यकता थी। अतः राम प्रसाद 'बिस्मिल'/चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व मे क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना कब्जे मे लेने की योजना बनाई। 09 अगस्त 1925 की रात्रि लखनऊ के 'काकोरी'रेलवे स्टेशन पर पेसेंजर गाड़ी के गार्ड से खजाने को हस्तगत किया गया। आज इस घटना को हुये 86 वर्ष पूर्ण हो गए हैं।


इस क्रांतिकारी घटना मे भाग लेने वाले स्वातंत्र्य योद्धाओं मे राम प्रसाद 'बिस्मिल',अशफाक़ उल्ला खान ,रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी को 17 एवं 19 दिसंबर 1927 को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी। बिस्मिल उस समय शाहजहाँपुर के मिशन स्कूल मे नौवी कक्षा के छात्र थे। वह पढ़ाई कम और आंदोलनों मे अधिक भाग लेते थे। गोरा ईसाई हेड मास्टर भी उनका बचाव करता था। एक बार जब वह कक्षा मे थे तो ब्रिटिश पुलिस उन्हें पकड़ने पहुँच गई। उस हेड मास्टर ने पुलिस को उलझा कर कक्षा अध्यापक से राम प्रसाद''बिस्मिल' को रेजिस्टर  मे गैर-हाजिर करवाया और भागने का संदेश दिया। बिस्मिल दूसरी मंजिल से खिड़की के सहारे कूद कर भाग गए और पुलिस चेकिंग करके बैरंग लौट गई। लेकिन खजाना कांड मे फांसी की सजा ने हमारा यह होनहार क्रांतिकारी छीन लिया। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क मे पुलिस से घिरने पर चंद्रशेखर 'आजाद'ने भी खुद कोअपनी ही पिस्तौल की गोली से  शहीद कर लिया। 


होनहार युवा/छात्रों ने आजादी की मशाल को थामे रखा जब 08 अगस्त 1942 को गांधी जी के आह्वान पर 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का प्रस्ताव पास किया गया था। लगभग सभी बड़े नेता ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए थे। इस दशा मे सम्पूर्ण आंदोलन युवाओं और छात्रों द्वारा संचालित किया गया था। 11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय से यूनियन जेक को उतार कर तिरंगा छात्रों ने फहरा दिया था किन्तु सभी सातों छात्र ब्रिटिश पुलिस की गोलियों से शहीद हो गए थे। उनकी स्मृति मे वहाँ उनकी प्रतिमाएँ स्थापित की गई हैं। इस अभियान का नेतृत्व राजेन्द्र सिंह जी ने किया था और सबसे आगे उन्हीं की मूर्ती है। इस अभियान के संबंध मे श्री अजय प्रकाश ने एक लेख  लिखा था जो 18 जनवरी 1987 को प्रकाशित -'पटना हाईस्कूल भूतपूर्व छात्र संघ' की 'स्मारिका' मे छ्पा था ,आप भी उसकी स्कैन कापी देख सकते हैं-
(बड़े अक्षरों मे पढ़ने हेतु डबल क्लिक करें)






उसी स्मारिका मे छपा यह लेख आज भी छात्रों/युवाओं के महत्व को रेखांकित करता है-










'लोकसंघर्ष' मे प्रकाशित महेश राठी साहब के एक महत्वपूर्ण लेख द्वारा बताया गया है कि,"आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन का बेहद गौरवमयी और प्रेरणापरद हिस्सा है। ए .आई .एस .एफ .भारतीय स्वाधीनता संग्राम का वह भाग है जिसके माध्यम से देश के छात्र समुदाय ने आजादी की लड़ाई मे अपने संघर्षों और योगदान की अविस्मरणीय कथा लिखी"। 


राठी साहब ने बताया है कि,भारतीय छात्र आंदोलन का संगठित रूप 1828 मे सबसे पहले कलकत्ता मे 'एकेडेमिक एसोसिएशन'के नाम से दिखाई दिया जिसकी स्थापना एक पुर्तगाली छात्र विवियन डेरोजियो द्वारा की गई । 1840 से 1860 के मध्य 'यंग बंगाल मूवमेंट'के रूप मे दूसरा संगठित प्रयास हुआ। 1848 मे दादा भाई नौरोजी की पहल पर मुंबई मे 'स्टूडेंट्स लिटरेरी और सायींटिफ़िक सोसाइटी '
की स्थापना हुयी। कलकत्ता के आनंद मोहन बॉस और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी द्वारा 1876 मे 'स्टूडेंट्स एसोसिएशन'की स्थापना हुयी जिसने 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना मे महती भूमिका अदा की। 16 अक्तूबर 1905 मे बंगाल विभाजन के बाद छात्रों एवं युवाओं ने जबर्दस्त आंदोलन चलाया जिसमे आम जनता का भी सहयोग रहा।


1906 मे राजेन्द्र प्रसाद जी (जो पहले राष्ट्रपति बने थे) की पहल पर 'बिहारी स्टूडेंट्स सेंट्रल एसोसिएशन'की स्थापना हुयी जिसने बनारस से कलकत्ता तक अपनी शाखाएँ खोली और 1908 मे बिहार मे इसी संगठन के बल पर कांग्रेस की स्थापना हुयी। श्रीमती एनी बेसेंट ने 1908 मे 'सेंट्रल हिन्दू कालेज'नामक पत्रिका मे एक अखिल भारतीय छात्र संगठन बनाने का विचार प्रस्तुत किया।


25-12-1920 को नागपूर मे आल इंडिया कालेज स्टूडेंट्स कान्फरेंस का आरंभ हुआ जिसकी स्वागत समिति के अध्यक्ष आर .जे .गोखले थे। इसका उदघाटन लाला लाजपत राय ने किया था। 1920 से 1935 तक देश मे बड़े स्तर पर विद्यालयों  और महा विद्यालयों की स्थापना हुयी। आजादी के संघर्ष मे छात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई दे रही थी।


26 मार्च 1931 को कराची मे जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता मे एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमे देश भर से 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 23 जनवरी 1936 को यू .पी .विश्वविद्यालय छात्र फेडरेशन ने अपनी कार्यकारिणी मे अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया। पी .एन .भार्गव की अध्यक्षता मे एक स्वागत समिति का गठन किया गया जिसने देश के सभी छात्र संगठनों तथा कांग्रेस,सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी सहित सभी राजनीतिक धड़ों से संपर्क बनाया।


12-13 अगस्त 1936 को लखनऊ मे -सर गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल मे भगत सिंह के विचारों और रुसी क्रांति से  प्रेरित  A I S F का स्थापना सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसमे 936 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमे से 200 स्थानीय और शेष 11 प्रांतीय संगठनों के प्रतिनिधि थे। सम्मेलन मे महात्मा गांधी,रवीन्द्रनाथ टैगोर,सर तेज बहादुर सप्रू और श्री निवास शास्त्री सरीखे गणमान्य व्यक्तियों के बधाई संदेश भी प्राप्त हुये। सम्मेलन का उदघाटन जवाहर लाल नेहरू ने किया।


A I S F के स्थापना सम्मेलन मे पी .एन .भार्गव पहले महा सचिव निर्वाचित हुये । 'स्टूडेंट्स ट्रिब्यून'इसका पहला आधिकारिक मुख पत्र था। 22-11-1936 को लाहौर मे दूसरा सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता शरत चंद बॉस ने की और उसमे 150 लोगों ने भाग लिया। इसमे छात्रों का एक मांग पत्र भी तैयार हुआ।


आजादी के आंदोलन मे सक्रिय और महत्वपूर्ण भाग लेने वाला यह संगठन आगामी 12-13 अगस्त 2011 को लखनऊ के उसी गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल मे अपनी प्लेटिनम जुबली मनाने जा रहा है जिसका खुला निमंत्रण A I S F की ओर से जारी किया गया है ............


फ़रवरी 07, 2011

U.S.'s cruellest face : Bastards REMOVE RADIO COLLAR FROM THE LEGS OF INDIAN STUDENTS !



THOUSANDS OF STUDENTS ORGANISED PROTEST DHARNA AT JANTAR-MANTAR  AGAINST EDUCATION BILLS AND DEMANDED REMOVAL OF RADIO COLLAR  FROM THE LEGS OF INDIAN STUDENTS !

Thousands of activist of All India Students Federation came for the national level Dharna raised voice against undemocratic educational bills proposed by UPA II Govt. and inhuman act of America with Indian students.











The Dharna was presided by National President of AISF Paramjit Dhaban. The General Secretary of AISF Abhay Taksal demanded  to remove radio collars from the legs of Indian students and also demanded to save public funded schools, colleges, hostels, universities and scrap Foreign University, National Commission For Higher Education and Research (N.C.H.E.R.), Education Tribunal Bills. Former M.P. and Deputy General Secretary of CPI Com. S. Sudhakar Reddy while addressing dharna emphasized that UPA II  Govt. should hold public hearing on educational bills all over the country. Member of Rajyasabha Com. D. Raja strongly supported the demands of students and he appealed to students that they should agitate more and more.    Thousands of students  participated from all the states in this Dharna. They were holding Play cards against US Government demanding removal of  radio collars from the legs of Indian Students, *Central Govt. should spend 6% of GDP on education, *Central Government should provide 100% amount for the implementation of RTE act, *Central Govt. should provide free and compulsory education for the children upto 18 years, *Withdraw all types of fees hike, *Implement S.C., S.T., O.B.C. reservation mandated by constitution of India, *Stop F.D.I. in education, *Declare democratic elections in all educational campuses and elected student bodies should be involved in decision making structure and also raised loud slogans.   Specially invited Former MP Debbrata Biswas, Abani Roy, Nama Nageshwar Rao, and Former General Secretary of AISF Amarjit Kaur also addressed this Dharna. In a concluding speech AISF National President Paramjit Dhaban condemned the lathi charge on AISF activist agitating in front of American Embassy at Hyderabad and warned the Govt. that they should keep mum on American arrogance