(जेल नोटबुक का दूसरा पन्ना)
भगत सिंह की ‘जेल नोटबुक’ खोलते ही पहले पन्ने पर अंग्रेज़ी में लिखा है :
“भगत सिंह के लिए
चार सौ चार (404) पृष्ठ...”
नीचे एक हस्ताक्षर है और 12-9-29 की तिथि दी गई है. यह जेल अधिकारियों द्वारा भगतसिंह को कापी देते समय लिखा गया था. उस समय ऐसा किया जाना सामान्य था.
इसके नीचे भगतसिंह के दो पूरे और दो लघु हस्ताक्षर हैं. पृष्ठ के ऊपरी किनारे पर भी अंग्रेज़ी में भगतसिंह का नाम लिखा है.
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पृष्ठ 11
एक अच्छी सरकार की परिभाषा : “अच्छी सरकार स्व-शासन का विकल्प कभी नहीं हो सकती”
“ हेनरी कैम्पबेल बैनरमैन”
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पृष्ठ 15
राजा और राजतंत्र : राष्ट्र ने लुई चौदहवें के विरुद्ध नहीं, बल्कि सरकार के निरंकुश सिद्धांतों के विरुद्ध विद्रोह किया था. ये सिद्धांत मूलत: उससे नहीं, बल्कि कई सदी पहले स्थापित आरंभिक व्यवस्था से पैदा हुए थे, और इतनी गहराई में जड़ जमा चुके थे कि खत्म नहीं किये जा सके थे, तथा परजीवियों एवं लुटेरों का गंदगी से भरा हुआ अस्तबल....कर सकती थी। जब कोई काम करना ज़रूरी हो जाता है, तो उसे दत्त चित्त होकर करना चाहिए, या उसे करने की कोशिश ही नहीं करनी चाहिए...राजा और राजतंत्र दो अलग-अलग भिन्न चीजें थीं; और पूर्वाक्त (यानी राजा) या उसके सिद्धान्तों के ही विरोध में यह विद्रोह हुआ और क्रांति की गई.
द राइट्स ऑफ़ मैन से
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पृष्ठ-16
मज़दूर का अधिकार
‘‘जो कोई भी कठिन श्रम से कोई चीज़ पैदा करता है उसे यह बताने के लिए किसी ख़ुदाई पैग़ाम की ज़रूरत नहीं कि पैदा गई चीज़ पर उसी का अधिकार है.’’
राबर्ट जी इंगरसोल
अमेरिकी वकील, वक्ता और लेखक (1832-1899)
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पृष्ठ-18-
ग़रीब मज़दूर
‘‘...और हम लोग, जिन्होंने इस काम को अंजाम देने का बीड़ा उठाया, इस दुनिया में कुजात ही रहे. एक अंधी किस्मत, एक विराट निर्मम तंत्र ने काट-छाँटकर हमारे अस्तित्व का ढाँचा निर्धारित कर दिया. हम उस वक़्त तिरस्कृत हुए, जब हम सबसे अधिक उपयोगी थे, हमें उस वक़्त दुत्कार दिया गया, जब हमारी ज़रूरत नहीं थी, और हमें उस वक़्त भुला दिया गया, जब हमारे ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूटा हुआ था. हमें बीहड़-बंजर साफ़ करने के लिए, उसकी सारी आदिम भयंकरदाताओं को दूर करने के लिए, तथा उसके विश्व-पुरातन अवरोधों को छिन्न-भिन्न कर डालने के लिए भेज दिया जाता. हम जहाँ भी काम करते, वहाँ एक दिन एक नया शहर जन्म ले लेता और जब यह जन्म ले ही रहा होता, तब यदि हममें से कोई वहाँ चला जाता, तो उसे ‘बिना निश्चित पते का आदमी’ कहकर पकड़ लिया जाता और सिरफिरा-आवारा कहकर उस पर मुकदमा चलाया जाता.’’
पैट्रिक मैकगिल की कृति, चिल्ड्रेन ऑफ़ द डेड एंड,
स्रोत- अज्ञात
भूख
‘‘शासक के लिए उचित यही है कि उसके शासन में कोई भी आदमी ठंड और भूख से पीड़ित न रहे. आदमी के पास जब जीने के मामूली साधन भी नहीं रहते, तो वह अपने नैतिक स्तर को बनाए नहीं रख सकता.’’
कोंको होशी
जापान का बौद्ध भिक्षु,14वीं सदी, पृ 135
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पृष्ठ-31 में ये उर्दू में लिखा शेर है लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि किस शायर का है.
तुझे ज़बह करने की खुशी, मुझे मरने का शौक,
मेरी भी मर्ज़ी वही है, जो मेरे सैयाद की है.
(क्रमशः)